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हाथी के दांत की तरह दिखावे की होगी जम्मू कश्मीर की सरकार?

लेखक- सनत जैन
जम्मू कश्मीर में शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव संपन्न हुए हैं। इस बार मतदाताओं ने खुलकर मतदान किया है। जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में निर्वाचित ने शपथ ले ली है। सरकार और उपराज्यपाल के अधिकार को लेकर सरकार बनने के साथ ही नई-नई चर्चाएं शुरू हो गई है। जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म हो गया है। जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है। केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल के जो अधिकार बनाए दिए हैं। उसमें केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपालों के हाथ में जो अधिकार होते हैं। निर्वाचित सरकार के पास पूर्व राज्य के अधिकार नहीं होते हैं। केन्द्र शासित प्रदेशों की निर्वाचित सरकारों को हर बात के लिए उपराज्यपाल की अनुमति लेनी होती है। जिस तरह की स्थिति दिल्ली में बनी हुई है। उसी तरीके की वर्तमान स्थिति जम्मू-कश्मीर की नव निर्वाचित राज्य सरकार की होगी। केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल को पांच विधायकों के मनोनयन का अधिकार दिया है। जिन राज्यों में गैर भाजपा शासित राज्य सरकार होती हैं। वहां के उपराज्यपाल निर्वाचित सरकार को वह काम नहीं करने देते हैं, जो वहां की सरकार चाहती है। जिन राज्यों में गैर भाजपाई सरकारें होती हैं। वहां के राज्यपाल निर्वाचित सरकारों के कामकाज में अडंगा लगाते है।

विधानसभा से जो बिल पास होते हैं। उनकी स्वीकृति नहीं देते है। राज्य सरकारों के कामकाज पर राज्यपाल अड़ंगा लगाते है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लेकर केंद्र और राज्य के बीच में विवाद की स्थिति बनी हुई है। 35ए की वजह से अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर मैं अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। धारा 370 को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकार के बीच में जिस तरह से विवाद देखने को मिल रहे हैं। जब तक जम्मू कश्मीर विधानसभा को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा। तब तक यह विवाद जन्म लेते रहेंगे। पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सहमति से है। जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा कब मिलेगा, यह कहना अभी मुश्किल है। जब तक जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा। तब तक जम्मू-कश्मीर में वास्तविक रूप से उपराज्यपाल का ही शासन होगा। निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री ट्रांसफर पोस्टिंग भी नहीं कर पाएंगे।

हर काम के लिए उन्हें उपराज्यपाल पर निर्भर रहना पड़ेगा। मुख्यमंत्री को किस तरह से उपराज्यपाल सहयोग करते हैं या उप राज्यपाल अपने हिसाब से काम करते हैं। उपराज्यपाल सरकार को भरोसे में लेकर काम करते हैं। इसका पता बाद में चलेगा। जम्मू-कश्मीर में सरकार किस तरह से सरकार चलेगी, या ठीक उसी तरीके से रोजाना विवाद होंगे, जैसे दिल्ली में हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर सीमावर्ती राज्य है। पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश की सीमाएं लगी हुई है। सीमावर्ती राज्य होने के कारण सुरक्षा बलों की भी पर्याप्त संख्या में तैनाती हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय का भी हस्तक्षेप भी लगातार बना रहता है। ऐसी स्थिति में नई सरकार के भविष्य को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं।

राज्य में काफी लंबे समय के बाद निर्वाचित सरकार आई है। उसके बाद आशा की जा सकती है, कि उपराज्यपाल और राज्य सरकार मिलजुल कर काम करेगी। सीमावर्ती राज्य होने के कारण केंद्र सरकार भी संवेदनशीलता के साथ राज्य सरकार को विश्वास में लेते हुए निर्णय करेगी। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के रिश्ते बेहतर होंगे। उप राज्यपाल बॉस की तरह नहीं एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में काम करके राज्य सरकार के साथ अपने रिश्तों को मजबूत बनाएंगे। जिस तरह के विवाद रोजाना दिल्ली सरकार और वहाँ के उपराज्यपाल के बीच देखने को मिल रहे हैं। वह स्थिति जम्मू-कश्मीर में नहीं बनेगी। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार वर्तमान स्थिति को देखते हुए समन्वय बनाकरकाम करेंगे। यह आशा की जा सकती है।

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