जिसका ‘दोस्त’ अमेरिका उसे दुश्मन की ज़रूरत क्या है ?

तनवीर जाफ़री

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प  शांति का नोबल पुरस्कार लेने की फ़िराक़ में तो ज़रूर हैं परन्तु उनके फ़ैसले व बयानों से यही नज़र आ रहा है गोया उन्होंने पूरे विश्व को अशांत व विचलित करने का ठेका ले रखा है। ख़ासकर चूँकि वे स्वयं एक व्यवसायी पृष्ठभूमि से सम्बन्ध रखते हैं इसलिये उनके अनेक फ़ैसलों व बयानों में व्यवसायिकता का भाव साफ़ देखने को मिलता है। इत्तेफ़ाक़ से यही डोनाल्ड ट्रम्प 2017 से 2021 के अपने पहले कार्यकाल के दौरान झूठ बोलने व भ्रामक दावे करने का भी ‘विश्व कीर्तिमान ‘ बना चुके हैं। अमेरिकी प्रतिष्ठित समाचार पत्र वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक़ ट्रम्प ने अपने पहले  कार्यकाल में कुल 30,573 झूठे या भ्रामक दावे किए थे। यानी उन्होंने औसतन प्रतिदिन लगभग 21 झूठे दावे किए थे । 2021 में राष्ट्रपति भवन से उनकी बिदाई कितनी हिंसक व शर्मनाक थी यह भी दुनिया ने देखा था।

बहरहाल उनकी दक्षिणपंथी सोच के चलते एक बार फिर अमेरिकी जनता ने उन्हें निर्वाचित कर लिया है। परन्तु इस बार वे कुछ अलग ही ‘अवतार ‘ में नज़र आ रहे हैं। जहाँ वे विश्व शांति दूत बनने की फ़िराक़ में युद्ध रत देशों के बीच  ‘युद्ध विराम ‘ करने वाले एक महान शांतिप्रिय नेता के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाह रहे हैं वहीँ अपनी  व्यवसायिक मानसिकता के कारण वे युद्धग्रस्त देशों को शस्त्रों की आपूर्ति करने में भी पीछे नहीं हैं । इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने इस दूसरे कार्यकाल में ‘टैरिफ़ बम ‘ छोड़ कर भी अनेक देशों को विचलित कर दिया है। ख़बरों के अनुसार राष्ट्रपति ट्रंप अब तक 92 देशों पर टैरिफ़ लगाने की घोषणा कर चुके हैं जो संभवतः 7 अगस्त 2025 से लागू होंगे। विभिन्न देशों पर अलग अलग कारणों से टैरिफ़ लगाने के अतरिक्त इसी सन्दर्भ में पिछले दिनों उन्होंने भारत व रूस को लेकर जो ग़ैर ज़िम्मेदाराना बातें कहीं वह पूरी तरह असत्य व असभ्य थीं। राष्ट्रपति ट्रंप ने 30 जुलाई 25 को सोशल मीडिया पर भारत और रूस की अर्थव्यवस्थाओं को “मृत अर्थव्यवस्था” कह डाला। उन्होंने भारत से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ़ और रूस से तेल व सैन्य उपकरणों की ख़रीद के लिए भारत पर अतिरिक्त जुर्माना लगाने तक की घोषणा कर डाली । यह क़दम भारत और रूस के बीच गहरे व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों, विशेष रूप से रूस से भारत के तेल आयात और सैन्य ख़रीद के कारण उठाया गया। ट्रंप की सोच है कि भारत और रूस के बीच गहरे व्यापारिक और रणनीतिक संबंध अमेरिका के व्यापारिक हितों के ख़िलाफ़ हैं। ट्रंप ने भारत और रूस को ब्रिक्स समूह का हिस्सा होने के कारण भी निशाना बनाया, जो अमेरिकी डॉलर को वैश्विक व्यापार में चुनौती देता है।

इसी सन्दर्भ में ट्रंप ने भारत और रूस की रणनीतिक साझेदारी, ख़ासकर  रूस से तेल और हथियारों की खरीद को लेकर तंज़ कसते हुये कहा कि उन्हें परवाह नहीं कि भारत रूस के साथ क्या करता है, लेकिन दोनों देश अपनी “मृत अर्थव्यवस्थाओं” को और नीचे ले जा सकते हैं। यह बयान भारत के रूस के साथ संबंधों को लेकर अमेरिका की नाराज़गी को दर्शाता है, विशेष रूप से जब अमेरिका, रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है। भारत ने भले ही “मृत अर्थव्यवस्था” बताने पर ट्रंप को कोई माक़ूल जवाब नहीं दिया परन्तु  रूसी सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने ज़रूर ट्रंप को धमकी भरा ज़बरदस्त जवाब दे दिया। मेदवेदेव ने अपने टेलीग्राम चैनल पर लिखा कि ट्रम्प को अपनी पसंदीदा फ़िल्म ‘द वॉकिंग डेड’ याद करनी चाहिए और यह सोचना चाहिए कि ‘डेड हैंड’ कितना ख़तरनाक हो सकता है। दरअसल ‘डेड हैंड’ शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ की एक स्वचालित परमाणु हथियार नियंत्रण प्रणाली थी, जो बड़े पैमाने पर रूसी नेतृत्व के नष्ट होने पर भी स्वचालित रूप से परमाणु हमला शुरू कर सकती है। मेदवेदेव ने ट्रम्प को साफ़ शब्दों में चेतावनी दी कि रूस की ताक़त को कम न आंकें। मेदवेदेव की यह चेतावनी ट्रंप के रूस और भारत की अर्थव्यवस्थाओं को “मृत” क़रार देने तथा  यूक्रेन युद्ध को 10 दिन में समाप्त करने की समय सीमा निर्धारित करने के जवाब में थी।

उधर राष्ट्रपति ट्रंप ने भी पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की “डेड हैंड” चेतावनी के जवाब में रूस के निकटवर्ती क्षेत्रों में दो परमाणु पनडुब्बियों को तैनात करने का आदेश दे दिया है। ट्रंप ने मेदवेदेव के कथित  ‘भड़काऊ बयानों’ का हवाला देते हुए कहा कि यह क़दम एहतियाती है ताकि ऐसी बयानबाज़ी को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि, ट्रंप ने यह साफ़ नहीं किया कि ये पनडुब्बियां परमाणु हथियारों से लैस हैं या केवल परमाणु ऊर्जा से संचालित हैं परन्तु ट्रंप की इस घोषणा ने पूरे विश्व को चिंतित ज़रूर कर दिया है। रूस की ओर से भी यह बता दिया गया है यह दोनों ही अमेरिकी पनडुब्बियां उसके निशाने पर हैं। गोया दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुँच गया है। सवाल यह कि राष्ट्रपति ट्रंप को किसी देश की अर्थ व्यवस्था को ‘मृत अर्थव्यवस्था’ कहने का क्या अधिकार है ? वैसे भी विश्व बैंक, आईएमएफ़ सहित और भी कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.3-6.7 प्रतिशत अनुमानित की है। यह जीडीपी वृद्धि दर अमेरिका की 1.9 प्रतिशत की तुलना में कहीं ज़्यादा है। इन आंकड़ों से ही पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था ‘मृत’ नहीं बल्कि जीवंत है और साथ ही यह प्रति व्यक्ति आय कम होने के बावजूद यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से भी एक है।

सच पूछिये तो आज यूक्रेन भी जिस बुरे दौर से गुज़र रहा है उसका कारण भी यूक्रेन को दिया जाने वाला अमेरिकी व नाटो समर्थन ही है। यानी यूक्रेन, अमेरिका की दोस्ती का नतीजा भुगत रहा है और अमेरिका यूक्रेन का साथ देने के बजाये इसमें भी व्यवसाय कर रहा है। इसी तरह पिछले दिनों ईरान ने अमेरिका के घनिष्ठ मित्र देश इस्राईल को धूल चटा डाली। हाँ,युद्ध के आख़री दिनों में अमेरिका ने ईरान में मामूली बंबारी कर इस्राईल को यह ज़रूर जता दिया कि घबराओ मत, हम तुम्हारे साथ हैं। परन्तु तब तक ईरान ने तेल अवीव के बड़े हिस्से को खंडहर बना दिया था। इसी तरह याद कीजिये 1971 के वह दिन जब अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता के रूप में अपना सातवां युद्ध पोत भेजने का दिलासा दिया था। वह सातवां बेड़ा तो पहुंचा नहीं परन्तु इंदिरा गाँधी के सबल व कुशल नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े ज़रूर कर दिये। आज फिर अमेरिका उसी भारत विरोधी पाकिस्तान को हर तरह से शह देने की नीति पर चल रहा है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे यह साबित होता है कि जिसका ‘दोस्त’ अमेरिका हो उसे दुश्मन की ज़रूरत ही क्या है?

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