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विश्वास की कड़ी टूटते ही मणिपुर में हिंसा

लेखक-सनत जैन

एक बार फिर मणिपुर हिंसा की आग में झुलस रहा है। पिछले 11 दिनों में 8 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। दोनों ही समुदाय एक दूसरे के ऊपर हमला कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी मणिपुर के मुख्यमंत्री और राज्यपाल का इस्तीफा मांग रहे हैं। स्कूली छात्र अब इस आंदोलन में शामिल हो गए हैं। स्कूली छात्रों ने इंफाल में सीआरपीएफ के जवानों पर भी हमला कर दिया। मणिपुर का राजभवन भी अब सुरक्षित नहीं रहा। यहां पर आंदोलनकारियों द्वारा पथराव किया जा रहा है। स्थानीय नागरिक कुकी हों या मेतई, दोनों ही ड्रोन और रॉकेट के हमलों से भयभीत हैं।

राज्य सरकार दोनों ही समुदाय को सुरक्षा नहीं दे पा रही है। केंद्र सरकार ने 50000 से अधिक सुरक्षाबल मणिपुर में तैनात कर रखा है। वह भी कुकी और मेतई समुदाय का विश्वास नहीं जीत पाईं है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के खिलाफ अब मैतई समुदाय में भी भारी रोष देखने को मिल रहा है। स्कूली छात्रों ने अपनी छह सूत्री मांगों को रखा था। जिस पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने कोई प्रतिक्रिया न देते हुए, छात्रों को टाल दिया। इससे छात्रों का गुस्सा भड़क गया है। छात्र सड़कों पर उतर आए हैं। मेतई संगठनों ने सरकारी कार्यालय में अपना झंडा फहरा दिया। आंदोलनकारियों का कहना है, सुरक्षा सलाहकार और डीजीपी राज्य में शांति स्थापित करने में असफल रहे हैं। आंदोलनकारी उन दोनों के साथ, मुख्यमंत्री और राज्यपाल को भी हटाने की मांग कर रहे हैं।

16 महीने से मणिपुर में हिंसा चल रही है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सुप्रीम कोर्ट सभी ने अपने-अपने स्तर पर प्रयास किया। मणिपुर की देश और विदेशों में चर्चा हो रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी दो बार मणिपुर का दौरा कर चुके हैं। इसके बाद भी मणिपुर में शांति स्थापित नहीं हो पा रही है। इसका मूल कारण हाईकोर्ट के आरक्षण पर दिए गए निर्णय के बाद से, मणिपुर घाटी सुलग रही है।

आरक्षण विवाद की चिंगारी मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने लगाई थी। आरक्षण के मुद्दे पर मेतई समुदाय का समर्थन प्रारंभ में मणिपुर के मुख्यमंत्री को मिल रहा था। लेकिन अब मेतई समुदाय भी उनसे नाराज है। मुख्यमंत्री के होते हुए इस समुदाय को काफी बड़ा नुकसान हुआ है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह मैतई समुदाय की रक्षा नहीं कर पाए। लाखों की संख्या में मेतई समुदाय की महिलाएं और बच्चे परेशान हैं। मणिपुर की पूर्व राज्यपाल अनसुईया उइके दोनों ही समुदाय के बीच विश्वास की कड़ी बनी थीं। मणिपुर की सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं का वर्चस्व है। मणिपुर की पूर्व राज्यपाल ने दोनों समुदाय के बीच विशेषकर महिलाओं के बीच समन्वय बनाने में सफलता पाई थी। वह दोनों ही समुदाय के लोगों से मिलकर उनका भरोसा जगा रही थीं।

विवाद को सुलझाने में वह दोनों पक्षों का भरोसा जीतने में सफल रही हैं। जैसे ही उनका कार्यकाल खत्म हुआ। अगस्त माह में वह गवर्नर का पद छोड़कर वापस चली गईं। उसके बाद से मणिपुर के लोगों में विश्वास का संकट पैदा हो गया है। पूर्व राज्यपाल अनसुईया उइके के रहते हुए दोनों समुदायों को विश्वास था, जल्द ही मणिपुर में शांति स्थापित होगी। जैसे ही अनुसुईया उइके मणिपुर छोड़कर गई हैं। उसके बाद से ही मणिपुर में हिंसा का नया दौर शुरू हो गया। मणिपुर में जब तक बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने रहेंगे, तब तक मणिपुर की समस्या का समाधान नहीं होगा। वही आग में पेट्रोल डालने का काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार की नीतियां और शांति के प्रयास मुख्यमंत्री के कारण मणिपुर में सफल नहीं हो पा रहे हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर दोनों ही समुदाय को अब कोई विश्वास नहीं है। रही सही कसर जो नए कार्यवाहक राज्यपाल आए हैं, वह भी मुख्यमंत्री के नक्शे-कदम पर चलकर पूरी कर रहे हैं। इस कारण मणिपुर की स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है। दोनों ही समुदाय के लोगों में डर और भय का वातावरण बना हुआ है।

पूर्व राज्यपाल अनसुईया उईके जरूर एक विश्वास का प्रतीक थी। उनके मणिपुर में नहीं होने से अब डर और भय का वातावरण बन गया है। ऐसी स्थिति में मणिपुर में शांति स्थापित हो पाना नामुमकिन है। केंद्र सरकार ने मणिपुर को एक तरह से मुख्यमंत्री के हवाले कर दिया है। जिसके कारण केंद्र और राज्य सरकार के प्रति मणिपुर के दोनों समुदायों में भयंकर नाराजी है। केंद्र सरकार को समय रहते, मणिपुर के मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर, निष्पक्ष प्रशासन को तैनात करना होगा। जो दोनों ही पक्षों का विश्वास जीत सके।

मणिपुर के मामले में केंद्र सरकार को पूर्व राज्यपाल अनसुइया उइके का भी उपयोग मणिपुर में शांति स्थापित करने में करना चाहिये। दोनों समुदाय को उनके ऊपर विश्वास है। विश्वास के जरिए ही दोनों समुदाय के बीच बातचीत हो सकती है। स्थितियों का समाधान निकाला जा सकता है। केंद्र सरकार को इस मामले में गंभीरता से विचार कर, तुरंत निर्णय लेने की जरूरत है। अनिर्णय की स्थिति में सीमावर्ती राज्य, पूर्वोत्तर राज्यों एवं देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर संकट उत्पन्न हो सकते हैं।

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