sidebar advertisement

बुलेट ट्रेन- वंदे भारत नहीं ट्रेन्स का सुरक्षित संचालन ज़रूरी

निर्मल रानी
गत 15 जून को रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव दिल्ली में पत्रकारों से एक अनौपचारिक वार्ता के दौरान रेल मंत्रालय की उपलब्धियां गिनाते हुये कह रहे थे कि भारतीय रेल आगामी 5 वर्षों में 250 से अधिक वंदे भारत एक्सप्रेस और 300 से अधिक अमृत भारत एक्सप्रेस ट्रेन्स चलाने की योजना पर कार्यरत है। इसी वार्ता के दौरान उन्होंने नई रेल पटरियां बिछाने ,गाड़ियों को तीव्र गति देने जैसे कई विषयों पर रौशनी डाली। रेल मंत्री ने यह भी बताया कि सुरक्षित यात्रा के लिए छह हज़ार किलोमीटर के मार्ग पर कवच लगाने का काम तेज़ गति से चल रहा है और अब दस हज़ार किलोमीटर मार्ग को कवच से लैस करने के लिए निविदा लाने की तैयारी की जा रही है। रेल मंत्री ने बताया कि नेटवक की क्षमता का विस्तार होने के बाद नयी गाड़यिों को तेज़ गति से चलाना संभव होगा। जिस दिन रेल मंत्री अपने मंत्रालय की उपरोक्त अनेक उपलब्धियां गिना रहे थे उसके ठीक दो दिन बाद यानी 17 जून (सोमवार) को प्रातःकाल जलपाईगुड़ी के पास खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन में पीछे से आ रही एक मालगाड़ी ने ज़ोरदार टक्कर मार दी। रंगापानी और निजबाड़ी के निकट हुई इस दुर्घटना में तीन बोगियां बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं। इस दुर्घटना में अब तक 15 लोगों के मरने व 60 से अधिक लोगों के घायल होने का समाचार है। इस घटना को लेकर रेलवे की ओर से अंतर्विरोध पैदा करने वाले बयान सुनने को मिले।रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष जया वर्मा सिन्हा के अनुसार उक्त ट्रेन्स में टक्कर संभवतः इसलिए हुई क्योंकि मालगाड़ी ने सिग्नल की अनदेखी की और अगरतला से सियालदह जा रही कंचनजंगा एक्सप्रेस को टक्कर मार दी। जबकि लोको पायलट संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष संजय पांधी ने कहा कि ‘‘रेलवे बोर्ड का यह कहना ग़लत है कि चालक को लाल सिग्नल पर एक मिनट के लिए ट्रेन रोकनी चाहिए और टीए 912 मिलने के बाद सीमित गति से आगे बढ़ना चाहिए।” उन्होंने कहा, ‘‘लोको पायलट की मौत हो जाने और सीआरएस जांच लंबित होने के बावजूद लोको पायलट को ही ज़िम्मेदार घोषित करना अत्यंत आपत्तिजनक है।” प्रायः रेल दुर्घटना बाद इस तरह के अंतर्विरोध पैदा करने वाले बयानआना भी एक सामान्य बात है। क्योंकि प्रत्येक अधिकारी यही चाहता है कि वह स्वयं को सुरक्षित रखते हुये दुर्घटना का ज़िम्मेदार किसी और कर्मचारी या अधिकारी को ठहरा दे। ज़ाहिर है यह नैतिकता का वह दौर तो है नहीं जबकि नवंबर 1956 में तमिलनाडु में हुई एक बड़ी रेल दुर्घटना के बाद तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नैतिक आधार पर रेल मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।

बहरहाल रेल विभाग के विकास व आधुनिकीकरण के तमाम दावों के बावजूद किसी न किसी कारण रेल दुर्घटनाओं का सिलसिला अभी भी बदस्तूर जारी है। दो जून 2023 को ओडिशा में बेंगलुरू-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी से जुड़ी भयानक ट्रिपल ट्रेन दुर्घटना जिस में कम से कम 50 लोग मारे गए थे और 350 से अधिक घायल हो गए थे वह तो सबसे अधिक चर्चा का केंद्र बनी थी। गत दस वर्षों में हुई प्रमुख रेल दुर्घटनाओं में 26 मई 2014 को उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में गोरखपुर की ओर जा रही गोरखधाम एक्सप्रेस दुर्घटना हुई जो ख़लीलाबाद स्टेशन के पास खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। इस हादसे में 25 लोगों की मौत हो गई थी और 50 से ज़्यादा लोग घायल हो गए थे। फिर 20 नवंबर 2 016 को कानपुर में पुखरायां के निकट इंदौर-पटना एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी जिसमें कम से कम 150 यात्रियों की मौत हो गई थी और 150 से अधिक यात्री घायल हो गए थे। इसी तरह 18 अगस्त 2017 को पुरी-हरिद्वार उत्कल एक्सप्रेस मुज़फ़्फ़र नगर में पटरी से उतर गई थी जिसमें 23 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 60 अन्य घायल हो गए थे। इसके बाद 13 जनवरी 2022 को बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस के 12 डिब्बे पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार क्षेत्र में पटरी से उतर गए, जिससे नौ लोगों की मौत हो गई और 36 अन्य घायल हो गए। यह घटनायें उल्लेखनीय हैं। प्रत्येक दुर्घटना के बाद रेल विभाग द्वारा अपनी आत्मरक्षा में तथा रेल यात्रियों को संतुष्ट करने की ग़रज़ से रेल सुरक्षा कवच से सम्बंधित कोई न कोई बयान भी दिया जाता है। परन्तु वास्तव में सुरक्षा सुनिश्चित हो नहीं पाती और बदनसीब रेल यात्री अपनी मंज़िल पर पहुँचने के बजाये ऐसी दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप अपनी जानें गँवा बैठते हैं और रेल विभाग को करोड़ों का नुक़्सान भी उठाना पड़ता है।

उधर रेल विभाग का फ़ोकस बुलेट ट्रेन,वंदे भारत व अमृत भारत एक्सप्रेस ट्रेन्स तथा रेल स्टेशंस की चमक दमक पर अधिक रहता है। जगह जगह स्टेशन के बाहर 100 फ़ुट के पोल पर तिरंगा फहराकर लोगों में राष्ट्रवाद जगाया जा रहा है। रेल इंजन्स पर तिरंगा चिपकाना ठीक है परन्तु रेल यात्री की यात्रा सुरक्षित है,इस बात की कोई गारंटी नहीं। ऐसी भीषण गर्मी में तमाम स्टेशन पर शीतल जल तो छोड़िये पीने का सादा पानी तक उपलब्ध नहीं है। बुज़ुर्गों को रेल यात्रा में दी जाने वाली छूट समाप्त कर दी गयी है। तमाम इंटरसिटी ट्रेन की सामान्य बोगी की जगह स्लीपर क्लास कर न केवल यात्रियों को बल्कि टिकट निरीक्षकों को भी परेशानी में डाल दिया गया है। ऐसे में देश के अभिजात वर्ग के लोगों के लिये चलाई जाने वाली बुलेट ट्रेन,वंदे भारत व अमृत भारत एक्सप्रेस ट्रेन्स आदि से सामान्य रुट पर सामान्य रेल गाड़ियों से यात्रा करने वाले आम रेल यात्रियों को क्या हासिल ? हम जैसे करोड़ों लोगों ने तो इत्तेफ़ाक़ से आजतक शताब्दी जैसी ट्रेन्स पर भी सफ़र इसलिए नहीं किया क्योंकि इसका किराया अन्य ट्रेन से अधिक है। ऐसे में रेल विभाग की प्राथमिकता क्या होनी चाहिये ? सामान्य ट्रेन्स को सामान्य नागरिकों की रेल यात्रा के मद्देनज़र सुगम,सुरक्षित,आरामदेह बनाना तथा प्रत्येक यात्री को बैठने की सीट मुहैय्या कराना या कि बुलेट ट्रेन,वंदे भारत व अमृत भारत एक्सप्रेस ट्रेन्स की उपलब्धियों का बखान करना। आम यात्रियों को इन रेलगाड़ियों की शृंखला से कोई वास्ता नहीं। रेल स्टेशन भी साफ़ सुथरे होने ज़रूरी हैं परन्तु विश्वस्तरीय स्टेशन निर्माण के नाम पर भ्रष्टाचार का बड़ा खेल खेलना मुनासिब नहीं। देश में जब जब रेल दुर्घटनायें होती रहेंगी तब तब यह सवाल उठता ही रहेगा कि देश में बुलेट ट्रेन- वंदे भारत ज़रूरी है या वर्तमान सामान्य ट्रेन्स का सुरक्षित संचालन?

#anugamini

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sidebar advertisement

National News

Politics