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960 करोड़ लागत के राष्ट्रीय राजमार्ग 44 की बदहाल स्थिति

लेखक- सनत जैन
देश का पहला साउंडप्रूफ हाईवे, जिसका उद्घाटन बड़ी धूमधाम से 2021 में किया गया था। यह बदहाली का शिकार हो चुका है। 28 किलोमीटर लंबा हिस्सा बनाने में 960 करोड़ रुपये की लागत आई थी। सिवनी और नागपुर के बीच में इस राजमार्ग पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। खराब स्थिति के कारण यह हाईवे देश भर की सुर्खियों में बना हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 का यह खंड, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की महत्वाकांक्षी परियोजना थी। साउंड प्रूफ बनाने के लिए इस राजमार्ग में पानी की तरह पैसा बहाया गया था। वहां पर आज बड़े-बड़े गड्ढों और बातरतीब मरम्मत नहीं होने की वजह से सिंगल लाइन से गाड़ियां निकल रही हैं। इस कारण वाहन चालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस पर भी यहां से गुजरने वाले वाहनों को टोल टैक्स पूरा देना पड़ रहा है।

साउंडप्रूफ हाईवे को बनाने के लिए दोनों तरफ मेटल शीट्स लगाई गईं हैं, ताकि वाहनों के शोर से पास के नेशनल टाइगर रिज़र्व के जानवरों और पशु पक्षियों पर शोरगुल का प्रभाव न पड़े। इस हाईवे पर आवाजाही करते समय यात्रियों को न केवल आवाज़ वरन सड़कों की खराब स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। लगभग 200 फीट लंबा हिस्सा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है, जिसका पूरा पुनर्निर्माण किया जा रहा है। सड़कों के बीच बड़े-बड़े गड्ढे के कारण कई दुर्घटनाऐं हो गई हैं। एक ही साइड से यातायात को चलाया जा रहा है। दोनों ओर वाहनों की कतारें लगी हुई हैं। राजमार्ग के 28 किलोमीटर के क्षेत्र में बड़े-बड़े गड्ढे हैं। जिसके कारण वाहन चालकों का चलना दूभर हो गया है। इस महत्वपूर्ण सड़क परियोजना के रखरखाव में गड़बड़ी को उजागर करती है।

भारत के सबसे आधुनिक राजमार्गों में से एक इस राजमार्ग में सुरक्षा के विशेष उपाय किए गए थे। वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर काफी प्रयास के बाद इस राजमार्ग को बनाने की अनुमति मिली थी। उच्च लागत वाली परियोजनाओं का दीर्घकालिक लाभ तभी मिल सकता है। जब इनका उचित रख-रखाव हो निर्माण कार्य बेहतर हो, भ्रष्टाचार ना हो। पिछले 10 साल में इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर बहुत बड़े-बड़े दावे किए गए। अब एक-एक करके घपले-घोटाले बड़ी संख्या में खुलकर सामने आने लगे हैं। जिस तरह से राजमार्ग और पुल क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। उससे वर्तमान केंद्र सरकार की बड़ी बदनामी हो रही है। विशेष रूप से राजमार्गों की गुणवत्ता और रख-रखाव को लेकर अब नितिन गडकरी के ऊपर भी निशाना साधा जा रहा है। पिछले कई वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में लागत से ज्यादा पैसा खर्च किया गया है।

कैग की आडिट रिपोर्ट में कड़ी आपत्ति जताई गई थी। किसी तरह वह मामला दब गया था। अब एक-एक करके फिर मामले खुलने लगे हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर जिस तरह से टोल टैक्स वसूला जा रहा है। उसकी भी कड़ी आलोचना होने लगी है। पहले 60 किलो मीटर से कम में कोई टोल टैक्स नहीं होता था। अब 20 से 30 किलोमीटर में कई टोल नाके देखने को मिल जाते हैं। इस समय अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे हालात हैं। जिसको जो मन में आ रहा है, वह कर रहा है। जिस तरह से रोजाना कपड़े बदले जाते हैं। उसी तरह बार-बार केंद्र सरकार अपने नियम एवं कानून बदल देती है। सरकार को लगता है, जनता से विभिन्न माध्यमों से जो टैक्स और शुल्क वसूल किए जा रहे हैं। जनता के पास बहुत पैसा है, सरकार जो टैक्स लगाती है।

जनता उसे आसानी से स्वीकार कर लेती है। अभी तक टोल नाकों को लेकर देश में कोई आंदोलन नहीं हुआ है। जिस राष्ट्रीय राजमार्ग से लागत, ब्याज और मुनाफा वसूल हो चुका है। उन पर अभी भी टैक्स वसूल किया जा रहा है। जो नियमों के विपरीत है। टैक्स वसूली के लिए फास्ट ट्रैक के बाद अब एक नया जीपीएस सिस्टम लाया जा रहा है। इसमें 24 घंटे में यदि कोई वाहन 20 किलोमीटर राजमार्ग पर चलेगा, तो उसके बाद शुरू से लेकर पूरा टोल टैक्स किलोमीटर के हिसाब से जीपीएस के माध्यम से कट जाएगा। टोल नाके के आसपास के लोगों को भी रोजाना टोल टैक्स देना पड़ जाएगा।

राजमार्ग परिवहन मंत्रालय ने 1,40,000 करोड रुपए का लक्ष्य टोल टैक्स से वसूल करने का बनाया है। वह टैक्स जीपीएस के माध्यम से सरकार वसूल करेगी। जो कि वर्तमान की तुलना में लगभग तीन गुना ज्यादा होगा। सरकार आम जनता के ऊपर तरह-तरह के टैक्स और शुल्क आये दिन लगा रही है। उसका विरोध शुरू होने लगा है। सरकार को यह ध्यान रखना होगा। जनता के ऊपर इस तरह से टैक्स का बोझ ना डाला जाए, जो जनता सहन नहीं कर पाए। अन्यथा आगे चलकर स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती है।

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