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चिंता का सबब बनता ओजोन परत का क्षरण

लेखक- योगेश कुमार गोयल
16 सितम्बर 1987 को मॉन्ट्रियल में ओजोन परत के क्षय को रोकने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता हुआ था, जिसमें उन रसायनों के प्रयोग को रोकने से संबंधित एक बेहद महत्वपूर्ण समझौता किया गया था, जो ओजोन परत में छिद्र के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं। ओजोन परत कैसे बनती है, यह कितनी तेजी से कम हो रही है और इस कमी को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं, इसी संबंध में जागरूकता पैदा करने के लिए 1994 से प्रतिवर्ष ‘विश्व ओजोन दिवस’ मनाया जा रहा है किन्तु चिन्ता की बात यह है कि पिछले कई वर्षों से ओजोन दिवस मनाए जाते रहने के बावजूद ओजोन परत की मोटाई कम हो रही है। प्रतिवर्ष एक विशेष थीम के साथ यह महत्वपूर्ण दिवस मनाया जाता है। विश्व ओजोन दिवस 2024 का विषय है ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाना’। विश्व ओजोन दिवस का यह विषय ओजोन परत की रक्षा करने और वैश्विक स्तर पर व्यापक जलवायु कार्रवाई पहलों को आगे बढ़ाने में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। विश्व ओजोन दिवस हमें स्मरण कराता है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए ओजोन परत आवश्यक है और यह विषय भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसे बचाने हेतु निरंतर जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

आईपीसीसी की एक रिपोर्ट में तापमान में डेढ़ तथा दो डिग्री वृद्धि की स्थितियों का आकलन किए जाने के बाद से इसे डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की आवश्यकता महसूस की जा रही है और इसके लिए दुनियाभर के देशों से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के नए लक्ष्य निर्धारित करने की अपेक्षा की जा रही है। जहां तक भारत की बात है तो भारत ने 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की तीव्रता में 35 फीसदी तक कमी लाने का लक्ष्य रखा है किन्तु जी-20 देशों पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों की समीक्षा पर आधारित एक रिपोर्ट में कुछ समय पहले कहा गया था कि भारत सहित जी-20 देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं, वे तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री तक सीमित करने के दृष्टिगत पर्याप्त नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अपेक्षित परिणाम हासिल करने के लिए इन देशों को अपने उत्सर्जन को आधा करना होगा। रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई थी कि जी-20 देशों की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम नहीं हो रही है, जहां अभी भी करीब 82 फीसदी जीवाश्म ईंधन ही इस्तेमाल हो रहा है और चिंताजनक बात यह मानी गई थी कि कुछ देशों में जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी भी दी जा रही है। भारत ने हरित ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य 2027 तक 47 फीसदी रखा है और 2030 तक सौ फीसदी इलैक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन का भी लक्ष्य है। हालांकि नवीन ऊर्जा के इन लक्ष्यों के लिए रिपोर्ट में भारत की सराहना भी की गई थी।

विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में आज जलवायु परिवर्तन के चलते विनाश का जो दौर देखा जा रहा है, उसके लिए काफी हद तक ओजोन परत की कमी मुख्य रूप से जिम्मेदार है और हमें अब यह भी भली-भांति समझ लेना चाहिए कि हमारी लापरवाही और पर्यावरण से बड़े पैमाने पर खिलवाड़ ही पर्यावरण विनाश की सबसे बड़ी जड़ है। कुछ समय पूर्व एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के चलते दुनियाभर में करीब 12 करोड़ लोग विस्थापित होंगे। ओजोन परत के सुरक्षित न होने से मनुष्यों, पशुओं और यहां तक की वनस्पतियों के जीवन पर भी बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है। यही नहीं, अधिकांश वैज्ञानिकों का मानना है कि ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा और पानी के नीचे का जीवन भी नहीं बचेगा। हिन्दी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से पर्यावरण पर छपी चर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ के मुताबिक ओजोन परत की कमी से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है, सर्दियां अनियमित रूप से आती हैं, हिमखंड गलना शुरू हो जाते हैं और सर्दी की तुलना में गर्मी अधिक पड़ती है, पर्यावरण का यही हाल पिछले कुछ वर्षों से हम देख और भुगत भी रहे हैं। दरअसल ओजोन परत में कमी और मोटे होते जा रहे छिद्र के कारण पृथ्वी तक पहुंचने वाली पराबैंगनी किरणें हमारे स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत हानिकारक प्रभाव डालती हैं। ओजोन परत की कमी से हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न हो रहे हैं।

ओजोन परत वातावरण में बनती है। जब सूर्य से पराबैंगनी किरणें ऑक्सीजन परमाणुओं को तोड़ती है और ये परमाणु ऑक्सीजन के साथ मिल जाते हैं तो ओजोन अणु बनते हैं। ओजोन परत पृथ्वी के धरातल से 20-30 किमी की ऊंचाई पर वायुमण्डल के समताप मंडल क्षेत्र में ओजोन गैस का एक झीना सा आवरण है। यह परत पर्यावरण की रक्षक मानी गई है क्योंकि यही वह परत है, जो पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। हमारे ऊपर के वातावरण में विभिन्न परतें शामिल हैं, जिनमें एक परत स्ट्रैटोस्फियर है, जिसे ओजोन परत भी कहा जाता है। ओजोन गैस प्राकृतिक रूप से बनती है। निचले वातावरण में पृथ्वी के निकट ओजोन की उपस्थिति प्रदूषण बढ़ाने वाली और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक लेकिन ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत की उपस्थिति पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए अत्यावश्यक है। जब सूर्य की किरणें वायुमंडल में ऊपरी सतह पर ऑक्सीजन से टकराती हैं तो उच्च ऊर्जा विकिरण के कारण इसका कुछ हिस्सा ओजोन में परिवर्तित हो जाता है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर के रूप में कार्य करती है। सूर्य विकिरण के साथ आने वाली पराबैगनी किरणों का लगभग 99 फीसदी भाग ओजोन मंडल द्वारा सोख लिया जाता है, जिससे पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी एवं वनस्पति सूर्य के तेज ताप और विकिरण से सुरक्षित हैं और इसी कारण ओजोन परत को सुरक्षा कवच भी कहा जाता है। यही कारण है कि प्रायः कहा जाता है कि ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

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