मोदी का ट्रैम्पोलिन – क्या हम छलांग लगा पाएंगे?

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

पिछली शताब्दियों में मानवता ने जो चुनाव किए हैं, वे हमें संकट की कगार पर लेकर आए हैं। जिस तरह से हमने अपनी अर्थव्यवस्थाओं,  अपने पर्यावरण और पारिस्थितिकी, अपनी शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था, अपने युवाओं और अगली पीढ़ी के पालन-पोषण को संभाला है, उसने हमें  हमें इस अस्थिर स्थिति तक पहुंचा दिया और दुनिया को संकट की दहलीज पर ला खड़ा किया है। आज अलग-अलग जगहों पर युद्ध, अस्थिर आर्थिक ढांचे, तेज़ी से बिगड़ती पारिस्थितिकी और बढ़ती  प्राकृतिक आपदाएं,  मानसिक स्वास्थ्य महामारी और नशे की लत जैसी समस्याएं, ये सब इसके प्रमाण हैं।

इसका मतलब विनाश और निराशा की तस्वीर पेश करना नहीं है। बदलाव की स्थिति, दरअसल संभावनाओं की स्थिति होती है। आज जो फैसले हम करेंगे, वे हमें या तो बड़े परिवर्तन की ओर ले जा सकते हैं या फिर पतन की ओर धकेल सकते हैं। 8.5 अरब की आबादी के साथ हम एक भारी-भरकम मानव जाति हैं, लेकिन अभी तक उस चेतना के स्तर तक नहीं पहुंचे हैं, जहां हम एकजुट होकर सामूहिक निर्णय ले सकें।

हम सरकारों, क़ानूनों और नेतृत्व पर भरोसा करते हैं कि वे पूरी दुनिया को दिशा दें। ऐसे समय में यह बहुत अहम है कि हम अपने लिए किस तरह का नेतृत्व चुनते हैं। अगर हम पृथ्वी का एक टिकाऊ और सुंदर भविष्य चाहते हैं, तो हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के आदर्श को सही मायने में अपनाना होगा। यह उपयुक्त है कि भारत, जिसने हमेशा सबको जोड़कर रखने की भावना को महत्व दिया है, ने नरेंद्र मोदी जैसे नेता को चुना है, जो इन मूल्यों को गहराई से मानते हैं। कई मायनों में भारत ने ऐसा नेतृत्व सामने रखा है जो उसकी आत्मा, उसकी संस्कृति और संस्कारों से मेल खाता है। यह बहुत ज़रूरी है। सिर्फ इसलिए नहीं कि समावेशिता  सही रास्ता लगती है, बल्कि इसलिए कि आने वाले समय में समावेशिता ही एकमात्र रास्ता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने बार-बार दुनिया के सामने एक अधिक समावेशी और सहयोगी मानवता का रास्ता दिखाया है। अफ़्रीकन यूनियन को G20 में शामिल कराने की पहल हो, ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की भूमिका, ‘वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड’ जैसी विशाल नवीकरणीय ऊर्जा योजना, पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने की नीति, संकट के समय सबसे पहले मदद पहुंचाने वाला देश बनना, या फिर महामारी के दौरान 96 देशों को मानवीय सहायता देना, इन सबमें भारत ने यह साबित किया है कि असली मायने काम में होते हैं, और हम छोटे-छोटे निजी लाभ की अपेक्षा मानवता को अधिक महत्व देते हैं।

समावेशिता का यह गुण नरेंद्र भाई की नेतृत्व शैली में भी स्पष्ट दिखाई देता है। ‘मन की बात’ पहल शासन की विशाल व्यवस्था में भले ही एक छोटा हिस्सा लगे, लेकिन इसका संदेश गहरा है। आम नागरिक से सीधा संवाद करके वे उनकी कहानियों, संघर्षों और योगदान को पहचानते और सम्मानित करते हैं। यही जुड़ाव उन्हें ज़मीन से जोड़े रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि उनकी नीतियां जनता की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुरूप हों।

मैं योग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में उनकी भूमिका की गहराई से सराहना करता हूं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा करवा कर उन्होंने योग के प्रति दुनिया में अद्भुत रुचि जगाई है और यह बताया है कि योग मनुष्य के जीवन में कितनी भलाई ला सकता है। आज के समय में यह और भी जरूरी है, क्योंकि योग की विधियां मानसिक और शारीरिक चुनौतियों से निपटने का सबसे असरदार उपाय हैं। हर इंसान के लिए यह आवश्यक है कि वह रोज़ कम से कम कुछ मिनट योग या ध्यान को अपनाए, ताकि अपने भीतर स्थिरता और विकास का मजबूत आधार बना सके।

भारत का सभ्यता-राज्य आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से वह अपनी असली क्षमता को पहचानकर एक गौरवशाली भविष्य की ओर बढ़ सकता है। अब तक हमने अपनी आर्थिक प्रगति में अभूतपूर्व कार्य और प्रगति देखी है, बुनियादी ढाँचे, अंतरिक्ष, रक्षा, कृषि और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में तेजी देखी है। साथ ही, हम आत्मनिर्भरता, भू-राजनीतिक लचीलेपन और शक्ति की दिशा में अपनी नीतियों के कुशल संचालन के भी साक्षी रहे हैं।

हालांकि, एक राष्ट्र के रूप में हमें अभी भी बहुत कुछ करना है। आने वाली पीढ़ी का सही मार्गदर्शन और पोषण हमारे विकास की कुंजी है। हम नहीं चाहते कि भारत की बढ़ती युवा आबादी इस सुनहरे अवसर को खो दे। अब समय आ गया है कि हम समाजवाद के अधूरे आदर्शों की आखिरी बेड़ियां तोड़ दें, जिन्होंने पिछले दशकों को जकड़ रखा था, और भारत के नागरिकों को अपने भविष्य के निर्माता बनने के लिए आमंत्रित करें। बुनियादी ढांचे से लेकर ए आई तक, व्यापार से लेकर रक्षा तक, शिक्षा से लेकर उद्योग तक, हमें जनता को इसे सुपरसोनिक गति से आगे बढ़ाने का काम सौंपना होगा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान शासन द्वारा यह विश्वास वास्तव में प्रदर्शित किया जा रहा है, लेकिन असली परीक्षा लोगों द्वारा इस विश्वास को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करने और अपनी क्षमता साबित करने की है।

भारत में न केवल अपने सच्चे गौरव के युग में प्रवेश करने की क्षमता है, बल्कि मानवता को उस युग में ले जाने की भी क्षमता है। हमारे पास एक योग्य, साहसी और निस्वार्थ व्यक्ति है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि राष्ट्र केवल ज़मीन का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि वहां रहने वाले लोग ही उसका असली रूप होते हैं। यह भारत के नागरिकों पर निर्भर है कि वे सुशासन और अवसर के मंच का उपयोग करके अपने इच्छित स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करें।

आइए, इसे साकार करें!

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