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मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को चार चाँद लगाया

तनवीर जाफ़री
पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का गत 26 दिसंबर को 92 साल की आयु में निधन हो गया। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में डॉक्टर मनमोहन सिंह को भाजपा नेताओं की जिसतरह की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा वह इतिहास में दर्ज हो चुका है। जैसे घटिया शब्द उस महान विश्वविख्यात अर्थशास्त्री की आलोचना के लिये इस्तेमाल किये गये उसका जवाब मरणोपरांत न केवल देश की जनता ने डॉक्टर मनमोहन सिंह के प्रति अपने अगाध प्रेम व अश्रुपूरित बिदाई से दिया बल्कि पूरे विश्व से प्राप्त सद्भावना संदेशों ने भी यह साबित कर दिया कि डॉक्टर सिंह अर्थजगत की एक ऐसी शख़्सियत थे जिनके योगदान को देश व दुनिया में हमेशा याद रखा जायेगा। डॉक्टर मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में वैसे तो ऐसे अनेक लोकहितकारी फ़ैसले लिये गये परन्तु उनमें ख़ास तौर पर सात निर्णय ऐसे थे जिन्होंने देश की दिशा व दशा दोनों बदल डाली। इनमें पहला क़ानून जो 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ वह था बहुचर्चित आरटीआई (Right to information ) अथवा सूचना का अधिकार। इसी क़ानून के चलते भारतीय नागरिकों को सरकारी अधिकारियों और संस्थानों से सूचना मांगने का अधिकार प्राप्त हुआ। आरटीआई क़ानून पंचायत से लेकर संसद तक प्रभावी है। यही वह क़ानून था जिससे कथित ज़मीन घोटाला ,खनन घोटाला, 2जी और कोयला ब्लॉक आवंटन में हुए घोटालों आदि को बेनक़ाब करने में सहायता मिली।
इसी तरह वर्ष 2005 में ही ग्रामीणों को कम से कम वर्ष में 100 दिनों के काम की गारंटी दिये जाने वाला क़ानून ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम ‘(नरेगा) बनाया बनाया गया। 2 फ़रवरी 2006 से लागू किये गये नरेगा क़ानून जो अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के नाम से जाना जाता है, के चलते ग्रामीण इलाक़ों में ग़रीबी भी कम हुई और ग्रामीण बेरोज़गारों का रोज़गार की तलाश में शहरों की ओर पलायन का सिलसिला भी काफ़ी कम हो गया। भाजपा सरकार जो पहले इस योजना का मज़ाक़ उड़ाती थी वही अब इस योजना को प्रोत्साहित करने को मजबूर है। यही वजह है कि वर्ष 2006-07 में जिस नरेगा का बजट 11 हज़ार 300 करोड़ था वह वर्ष 2023-24 में बढ़कर 86 हज़ार करोड़ रुपये हो चुका है। इसी प्रकार किसानों की कर्ज़ माफ़ी योजना वर्ष 2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लाई गयी जिसके अंतर्गत देश के किसानों का क़र्ज़ माफ़ करने का निर्णय लिया गया। उसके बाद वर्ष 2008 में मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में ही भारत और अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते के अंतर्गत ही भारत को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु तकनीक और ईंधन मिलने का रास्ता प्रशस्त हुआ था। साथ ही प्रायः पाकिस्तान की ओर झुकाव रखने वाले अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों ने इसी समझौते के चलते एक नया मोड़ लिया था।
डॉ सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल की सबसे बड़ी चुनौती 2008 में पूरी दुनिया में फैली आर्थिक मंदी भी थी। उस समय पूरे विश्व में आर्थिक तबाही मची हुई थी। दुनिया के साथ साथ भारत के भी शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट दर्ज की जा रही थी। वैश्विक आर्थिक तबाही के साथ साथ यह नौकरियों में बड़े पैमाने पर हो रही छटनी का भी दौर था। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी चरमरा जाएगी। परन्तु मनमोहन सिंह सरकार की बुद्धिमता व सूझबूझ ने हालात को ऐसा संभाला कि भारत इस आर्थिक मंदी की चपेट में आने से बच गया। इसी तरह वर्ष 2010 में मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा दिये गये शिक्षा के अधिकार क़ानून के अंतर्गत 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को मुफ़्त शिक्षा मुहैया कराने का संवैधानिक अधिकार दिया गया। अब कोई भी माता पिता अपने बच्चे को मुफ़्त शिक्षा दिलाने के लिए न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटा सकता है। इस क़ानून के तहत प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का अवसर सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। इसी तरह 2013 में लाया गया भोजन का अधिकार क़ानून भी देश के ग़रीब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा लागू किया गया था। इसी का रूप बदलकर सरकार आज मुफ़्त राशन योजना चलाकर अपने वोट बैंक के लिये इस योजना का इस्तेमाल कर रही है।
इसके अतिरिक्त मनमोहन सिंह स्वमहिमामंडन करने या अपनी पीठ स्वयं थपथपाने वाले या अपनी मार्केटिंग स्वयं कर अपनी लोकप्रियता लोगों पर जबरन थोपने वाले नहीं बल्कि देश के उन महान नेताओं में थे जिस की क़ाबलियत, सूझ बूझ,सौम्यता व महानता को पूरी दुनिया स्वीकार करती थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी एक किताब में उनकी प्रशंसा में लिखा था कि -‘मनमोहन सिंह ऐसे नेता है कि -‘जब वो बोलते है तो पूरी दुनिया सुनती है’। वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के पद से लेकर,वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार, वित्त मंत्रालय के सचिव,योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ,प्रधानमंत्री के सलाहकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष तथा ख़ासकर 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने जो कार्य किये वह स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक क्षण थे। आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में मनमोहन सिंह की भूमिका की भरपूर सराहना की जाती है । बाद में 2003 से 2013 तक के उनके प्रधानमंत्रित्व काल ने तो पूरे भारत सहित पूरे विश्व को उनकी क़ाबलियत व सौम्यता से परिचित करा ही दिया। मनमोहन सिंह के विषय में ओछी सोच व संकीर्ण मानसिकता रखने वाले विपक्षी नेताओं ने जो भी कहा हो परन्तु उस महान व्यक्ति के मरणोंपरांत देश व दुनिया की ओर से उनके प्रति जो मोह उमड़ता देखा गया तथा उनकी शान में जिसतरह के क़सीदे दुनिया के महान नेताओं द्वारा पढ़े गये उससे यह ज़ाहिर हो गया कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद की गरिमा को चार चाँद लगाने वाले एक महान व्यक्ति थे।

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