सनत जैन
बिहार की राजनीति में हाल ही में हुई घटनाओं ने जेडीयू के अस्तित्व पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। केसी त्यागी, जेडीयू के कद्दावर नेता और पार्टी के प्रवक्ता थे। उन्हें अचानक राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से हटा दिया गया है। इसको केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति के तहत देखा जा रहा है। जिसका उद्देश्य जेडीयू को कमजोर कर खत्म करना और क्षेत्रीय दलों में दहशत पैदा करना है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्य्क्ष पी नड्डा पिछले चुनाव में क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को खत्म होने का दावा कर चुके हैं। जेडीयू के अंदरूनी हालात पर नजर डालने से स्पष्ट है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब पहले जैसे सक्रिय और प्रभावी नेता नहीं रहे हैं। उनकी खराब सेहत के कारण पार्टी का नेतृत्व संजय झा और कुछ अन्य नेताओं के हाथों में चला गया है।
सत्ता संगठन पर नीतीश की पकड़ कमजोर हो गई है। इस बदलाव ने पार्टी के भीतर और बाहर सत्ता और संगठन के संतुलन को हिला दिया है। केसी त्यागी, ने हाल ही में मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों पर केंद्र सरकार की आलोचना की थी, इसके बाद त्यागी को हटाने के संकेत मिलना शुरू हो गए थे। गृहमंत्री अमित शाह जेडीयू के भीतर असंतोष का फायदा उठाना चाहते हैं। त्यागी ने मुस्लिम समुदाय के प्रति जेडीयू की सकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की थी, जो अब बीजेपी के लिए एक बडी मुसीबत बन रही थी। जेडीयू का पारंपरिक भूमिहार वोट बैंक में बीजेपी सेंध लगा रही है। अशोक चौधरी के भूमिहारों के खिलाफ दिए बयान से जेडीयू के वोट बैंक को कमजोर कर दिया है। यह स्थिति बीजेपी के लिए जेडीयू की आपदा में एक अवसर है।
जेडीयू के समर्थन आधार को भाजपा के पक्ष में करने की तैयारी अमित शाह की रणनीति है। अमित शाह की रणनीति का दूसरा पहलू है, अन्य एनडीए सहयोगियों को भी बिहार और जदयू के माध्यम से संदेश दिया जाए कि एनडीए के भीतर असहमति की कोई गुंजाइश नहीं है। यही रणनीति चिराग पासवान के मामले में भी देखने को मिल रही है। उन्हें भी तुरंत अनुशासन में लाने की तैयारी कर ली गई है। स्पष्ट है, कि अमित शाह ने जेडीयू को खत्म करने और बिहार में बीजेपी के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने की दिशा में कठोर, सटीक और सफल कदम उठाया है। इस रणनीति का उद्देश्य जेडीयू को कमजोर कर खत्म करना है। यह भी सुनिश्चित करना है, कि बाकी सहयोगी दलों में भी बीजेपी के प्रति दहशत के साथ वफादारी बनी रहे। आने वाले समय में, यह देखना होगा, जेडीयू इस चुनौती का सामना किस तरह से करता है। क्या केसी त्यागी जैसे नेता इस राजनीतिक संकट के बीच नए विकल्प की तलाश करते हैं। या पार्टी के अंदर रहते हुये लड़ाई का नया मोर्चा खोलते हैं।
केन्द्र की एनडीए सरकार के पास एकमात्र विकल्प बचा है। सहयोगी दल उसके साथ बने रहें। अन्यथा उनके सांसदों को भाजपा में शामिल कराकर उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाए। एनडीए गठबंधन के सहयोगी दलों द्वारा जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार के कामकाज में रोड़ा अटकाया जा रहा है। उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह काफी नाराज हो गए हैं। भारतीय जनता पार्टी को सदन में स्पष्ट बहुमत हो। क्षेत्रीय दलों की ब्लैकमेलिंग से बाहर निकलने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री की ओर से ऑपरेशन लोटस शुरु कर दिया गया है। जो भी क्षेत्रीय छत्रप आंख दिखाने की कोशिश करेंगे उनके सांसदों को भाजपा में प्रवेश देकर उस पार्टी को समाप्त करने की रणनीति शुरू हो चुकी है बिहार इसका पहला प्रयोग है।
भाजपा नेतृत्व का मानना है कि जब क्षेत्रीय दल ही नहीं रहेगा, रोजाना जो चुनौती मिल रही है वह भी समाप्त हो जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार को स्पष्ट बहुमत मिले। इसके लिए अब भाजपा कोई कोर कसर छोड़ने तैयार नहीं है। इस बार भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को निशाने पर लिया है। बिहार की घटना के बाद सहयोगी दलों में भारी दहशत का वातावरण बन गया है। इसकी परिणति कैसी होगी, कहना मुश्किल है।
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