निर्मल रानी
विगत दस वर्षों से भारतीय राजनीति में कई ‘नवगढ़ित’ शब्दों ने राजनैतिक शब्दावली में अपनी जगह बनाई है। ऐसा ही एक शब्द है ‘डबल इंजन की सरकार ‘। यानी जिस दल की केंद्र में सरकार उसी दल की सरकार का राज्य में भी होना। और यदि ‘डबल इंजन की सरकार ‘ बन भी जाये तो भी सत्ताधीशों की हवस यहीं ख़त्म नहीं होती। बल्कि फिर यह ‘ट्रिपल इंजन की सरकार ‘ की बात भी करने लग जाते हैं। यानी इनकी इच्छानुसार स्थानीय निकाय से लेकर दिल्ली की संसद तक हर जगह एक ही दल का परचम लहराये। हालांकि स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान जहाँ एक मज़बूत सरकार होती है वहीँ मज़बूत विपक्ष भी उस मज़बूत सरकार को नियंत्रित रखने के लिये ज़रूरी समझा जाता है। परन्तु 2014 में नरेंद्र मोदी के केंद्रीय सत्ता में आने के बाद विपक्ष विहीन लोकतंत्र स्थापित करने की कोशिश की जा रही है और राज्यों में यह माहौल पैदा किया जा रहा है कि केवल डबल इंजन की सरकार ही किसी राज्य को तरक़्क़ी के रास्ते पर ले जा सकती है। दुर्भाग्यवश ऐसी भी कई मिसालें हैं जहाँ भाजपा चुनाव परिणामों में तो कई राज्यों में सत्ता में नहीं आ सकी परन्तु उसने ख़रीद-फ़रोख़्त कर या डरा धमका कर या फिर लोभ लालच देकर यानी येन केन प्रकारेण डबल इंजन की अपनी सरकार बना डाली।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के झाबुआ के गोपालपुरा में जनजातीय समुदाय के सम्मेलन को संबोधित करते हुये अनेक विकास परियोजनाओं का लोकार्पण किया व अनेक योजनाओं का शिलान्यास भी किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने जहां सरकार की अनेक योजनाओं का ज़िक्र किया वहीं उन्होंने बड़े गर्व के साथ यह भी बताया कि -‘मध्यप्रदेश देश के सामने सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है कि डबल इंजन की सरकार कैसे काम करती है’। यहां एक अहम सवाल यह उठता है कि नरेंद्र मोदी स्वयं जब 2001 से लेकर प्रधानमंत्री बनने से पहले यानी 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस दौरान उनके शुरुआती मुख्यमंत्रित्व काल में ही यानी 2004 तक ही केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली एन डी ए सरकार सत्ता में थी। यह वही वाजपेई काल था जब 2002 के गुजरात नरसंहार के बाद वाजपेई ने मोदी को राजधर्म निभाने का उपदेश दिया था और गुजरात की बेलगाम हिंसा से आहत होकर कहा था कि ‘मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा ? ‘ जबकि उसके बाद 2014 तक यानी दस वर्षों तक तो केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू पी ए सरकार सत्ता में थी। परन्तु नरेंद्र मोदी ने इसी दौरान गुजरात में वाइब्रेंट गुजरात और इन्वेस्टर्स मीट आयोजित किये तथा उद्योग व पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने का प्रयास किया। यहाँ तक कि गुजरात के उसी कथित विकास मॉडल को लेकर 2013 में चुनाव प्रचार के दौरान यह भी कहते सुने गये कि केंद्र में सत्ता में आने के बाद पूरे देश में गुजरात मॉडल लागू करेंगे।
गोया नरेंद्र मोदी के अनुसार गुजरात ने उनके कार्यकाल में ही विकास की अभूतपूर्व इबारत लिखी। सवाल यह कि जब राज्य में उस समय डबल इंजन की सरकार नहीं थी तो गुजरात का विकास बिना केंद्र सरकार के सहयोग के कैसे संभव हुआ ? दिल्ली व पंजाब सहित उड़ीसा,दक्षिण भारत व पूर्वोत्तर के कई राज्य इस समय भी ग़ैर भाजपाई सरकारें चला रहे हैं। क्या वहां विकास नहीं हो पा रहा ? और इस बात की भी क्या गारंटी है कि डबल इंजन की सरकार ही विकास कर सकती है ? यदि वे मध्य प्रदेश की सरकार को देश के सामने सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बताते हुये यह कहते हैं कि डबल इंजन की सरकार ही विकास का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बन सकती है’ तो उन्हें मणिपुर का भी उदाहरण ज़रूर देना चाहिये जहाँ डबल इंजन की भाजपा सरकार के रहते हुए ही वह सब कुछ हुआ जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक किसी भी राज्य में नहीं हुआ। शायद छोटा व दूरस्थ पहाड़ी राज्य होने के नाते मणिपुर की हिंसा पर न ही प्रधानमंत्री ने कोई बयान दिया न ही राज्य के मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र दिया ? वहां तो राज्य के भाजपाई मंत्रियों विधायकों संसद व अन्य भाजपा नेताओं के घरों तक को आग लगा दी गयी ? उस समय डबल इंजन की सरकार ने मूकदर्शक बने रहने के सिवा और कौन सा तीर मार दिया ?
इसी तरह उत्तरांचल में डबल इंजन की सरकार बनी है। वहां की हल्द्वानी की घटना सबके सामने है। हरियाणा में डबल इंजन की सरकार है, यहां भी मेवात के नूह क्षेत्र में कुछ माह पूर्व हुई भयंकर हिंसा और उसके बाद हुई इकतरफ़ा कार्रवाई व बुलडोज़र आतंक पूरे देश ने देखा। राजस्थान में कुछ दिनों पूर्व ही डबल इंजन की सरकार बनी है। वहां भी हिजाब से लेकर खाद्य सामग्री तक पर चर्चा शुरू हो गयी। उत्तर पदेश के मुख्य मंत्री को तो ‘बुलडोज़र बाबा’ की उपाधि ही मिल चुकी। असम की डबल इंजन सरकार साम्प्रदायिकता को कैसे बढ़ावा दे रही है,सभी देख रहे हैं। गोया डबल इंजन की सरकार के रहते विकास हो या न हो परन्तु भाजपा का गुप्त साम्प्रदायिक एजेंडा ज़रूर लागू होने लगता है। कांग्रेस ने तो कभी भी इसतरह का ग़ैर लोकतान्त्रिक राजनैतिक विमर्श नहीं छेड़ा कि राज्य के विकास के लिये ‘डबल इंजन’ की सरकार होनी ही ज़रूरी है ? परन्तु भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं द्वारा प्रत्येक राज्यों के चुनाव के समय ‘डबल इंजन की सरकार’ का राग अलापने का तो यही अर्थ है कि इन्हें क्षेत्रीय राजनीति,क्षेत्रीय राजनैतिक दलों व क्षेत्रीय हितों की फ़िक्र नहीं बल्कि अपने समग्र अघोषित एजेंडे को लागू करने के लिये ही ‘डबल इंजन की सरकार’ का राग आलापने की ज़रूरत महसूस होती है। अन्यथा यदि केवल ‘डबल इंजन की सरकार’ ही विकास की ज़मानत होती तो न गुजरात तरक़्क़ी करता न महाराष्ट्र न पंजाब व हरियाणा जैसे राज्य। लिहाज़ा बेहतर होता यदि प्रधानमंत्री केवल मध्य प्रदेश को ही डबल इंजन की सरकार के काम करने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण न बताते बल्कि साथ ही डबल इंजन की सरकार की घोर विफलता के रूप में मणिपुर का भी नाम ज़रूर लेते क्योंकि डबल इंजन की सरकार तो यहां भी है वहाँ भी ?
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