नवीन दाहाल
माननीय मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (Prem Singh Tamang) ने हाल ही में दिल्ली दौरे के दौरान कहा था- ‘जनता की सेवा करने के लिए ही शायद भगवान ने मुझे भेजा है, आप लोग चिंता न करें, मैं हूं।’ यह कथन उन्होंने दिल से कहा है, क्योंकि वे स्वयं हर गरीब व्यक्ति के आंगन तक पहुंचकर सेवा और सहयोग पहुंचा रहे हैं। किसी भी कार्यक्रम में जब वे आगे पंक्ति में खड़े गरीबों और बीमारों से धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हुए, झुककर, आंखों में आंखें डालकर स्नेह बांटते हैं, तो वह दृश्य केवल औपचारिकता नहीं बल्कि मानवीय संवेदना का जीवंत प्रमाण होता है।
गरीबी क्या होती है, यह उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे स्वयं अभाव, संघर्ष और पीड़ा के रास्ते से गुजरते हुए यहां तक पहुंचे हैं। शायद इसी कारण वे असहाय लोगों के आंसू अपने हृदय से तुरंत महसूस कर लेते हैं। गरीबों, बीमारों और विद्यार्थियों के लिए उन्होंने जो सेवाकार्य किए हैं, वह जन-जन को ज्ञात है, यहां तक कि राज्य के बाहर भी इसकी चर्चा होती है।
आइए, एक क्षण के लिए विरोध की दृष्टि हटा दें, सत्ता, पद और राजनीति को भुलाकर एक असहाय, साधनहीन और जरूरतमंद सामान्य व्यक्ति की दृष्टि से देखें। जीवनभर तिरस्कार झेलने वाला, उपहास और मजाक का पात्र बना व्यक्ति, जब संकट की घड़ी में सीधे मुख्यमंत्री से मिल पाता है, बिना डर अपने दुख व्यक्त कर पाता है, एक आत्मीय आलिंगन पाता है, धैर्य से सुनने वाले मुख्यमंत्री के कान पाता है और अंत में “चिंता मत करो, मैं हूं” जैसा भरोसे का वाक्य सुनता है, तो क्या वह क्षण उसके लिए ऐसा नहीं होता मानो भगवान ने स्वयं उसके सिर पर हाथ रख दिया हो?
हमने सिक्किम के इतिहास में अब तक छह मुख्यमंत्री देखे हैं। कई ऐसे भी रहे जिन्होंने अहंकार दिखाया, जिनके सामने बोलना मना था, अपनी इच्छा या सुझाव रखना अपराध समझा जाता था, और साधारण लोगों को तुच्छ समझा जाता था। लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री की तरह गरीब, दुखी और असहाय ग्रामीण जनता से इतने आत्मीय रूप से मिलते हुए दृश्य पहले कभी देखने को नहीं मिले। पहले सत्ता सदा संपन्न वर्ग के आंगन तक सीमित रहती थी। परंतु मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने जनता की हर समस्या, अभाव और आवश्यकता का त्वरित समाधान कर स्वयं को जनता का प्रिय और सच्चा मुख्यमंत्री सिद्ध किया है।
संपन्न लोगों के लिए जीवन भले ही सहज हो, पर गरीब के लिए हर सुबह नया संघर्ष और अपार पीड़ा लेकर आती है। ऐसे में “मैं हूं, चिंता मत करो” कहने की स्थिति में गरीब पिता स्वयं नहीं होता, क्योंकि वह भी अभाव से जूझ रहा होता है। लेकिन आज हमारे राज्य को एक ऐसा मुख्यमंत्री मिला है, जो गरीबों और जरूरतमंदों के लिए “चिंता मत करो, मैं हूं” कहने वाला जीवंत भगवान बनकर सामने खड़ा है। जनता की हर समस्या में सरकार का स्वयं अभिभावक बनकर खड़ा होना देश के अन्य किसी हिस्से में दुर्लभ है, यह केवल सिक्किम में ही संभव हुआ है।
वर्ष 2019 से पहले गरीबों के लिए सत्ता नहीं थी; सत्ता केवल संपन्न लोगों के लिए थी। मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से गरीबों को सहायता मिलने की कल्पना तक नहीं थी। जब एसकेएम पार्टी की सरकार बनी, तब जाकर लोगों को पता चला कि मुख्यमंत्री कोष जैसी व्यवस्था भी होती है। आज की सरकार गरीबों की पीड़ा से जन्मी हुई सरकार है। इसी कारण मुख्यमंत्री जन-भेंटघाट कार्यक्रमों के माध्यम से सीधे जनता से मिलकर एक-एक व्यक्ति की समस्या, शिकायत और आवश्यकता का समाधान कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग को गरीबी से दुर्गंध नहीं आती, बल्कि गरीबों की पीड़ा की सुगंध आती है। गरीबों के आंसू उन्हें व्यथित करते हैं, इसलिए जहां गरीब जनता होती है, उनका मन और शरीर स्वतः वहीं खिंच जाता है। जब वृद्ध, असहाय लोग सीधे मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी पीड़ा रखते हैं और मुख्यमंत्री उन्हें स्नेह, सम्मान और भरोसा देते हैं, तो विरोधियों को असहजता होती है। जनता के हृदय से मिली लोकप्रियता जनविरोधी और गरीब-विरोधी शक्तियों को स्वीकार नहीं होती। जनता की लोकप्रियता न खरीदी जा सकती है, न दबाई जा सकती है।
गरीबों के लिए मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग केवल शासक नहीं, बल्कि अभिभावक हैं-इस पर जनता को पूर्ण विश्वास है। इसलिए हर कोई कहता है- ‘गोले हैं, तो सब संभव है।’
अंत में, गरीब और असहाय जनता के पक्ष में दिन-रात समर्पित होकर कार्य करने वाले, जनता से हृदय से प्रेम करने वाले जनप्रिय नेता एवं मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग को ईश्वर निरंतर उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें। उनका नेतृत्व सिक्किम की जनता के लिए आशा, विश्वास और सहारे का उजाला बनकर दीर्घकाल तक बना रहे।
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