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तीस्ता की हालत पर चिंता जताते हुए क्रामाकपा ने PM मोदी को लिखा पत्र

दार्जिलिंग । तीस्ता में बढ़ते जल स्तर ने हाल के दिनों में दार्जिलिंग पहाड़ियों और तराई डुआर्स के सीमांत इलाकों सहित पूरे सिक्किम में व्यापक चिंता पैदा कर दी है। पिछले साल अक्टूबर में तीस्ता आपदा के बाद तबाह हुए इलाके अभी संभल भी नहीं पाए थे कि एक बार फिर से उन पर मौसम की मार पड़ने लगी है। पिछले साल, जीटीए ने दावा किया था कि हम तीस्ता आपदा से निपटने में सक्षम हैं, लेकिन इस बात का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है कि स्थिति नियंत्रण में है। तीस्ता के गढ़ के आसपास के गांवों की स्थिति से सभी राजनीतिक दल तथा उसके नेता अवगत हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल पीड़ितों के लिए ठोस रूप से खड़ा नहीं हो सका है।

तीस्ता की स्थिति पर चिंता जताते हुए क्रामापाकपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। क्रामाकापा के केंद्रीय सचिव नरबू लामा ने एक वीडियो के माध्यम से तिस्ताबासी की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त की और बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और क्षेत्रीय सांसद राजू बिस्ट को एक पत्र भेजा गया है। उन्होंने कहा कि पिछले साल 4 अक्टूबर को सिक्किम और बंगाल में तीस्ता नदी के हेडवाटर के पास के इलाकों में विनाशकारी बाढ़ आई थी। हालांकि सिक्किम सरकार ने केंद्र सरकार का ध्यान विनाशकारी स्थिति की ओर आकर्षित किया है और आपदा घोषित की है, लेकिन बंगाल सरकार ने तीस्ता बाजार, रंगपो, मल्ली, रानीपुल की स्थिति पर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने का काम नहीं किया है।

लामा के अनुसार, तीस्ता में बाढ़ से व्यापक क्षति होने के बाद जीटीए ने एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें क्रामाकपा की ओर से वह स्वयं उपस्थित थे। उस बैठक में जीटीए के सत्तारूढ़ दल और राज्य सरकार के बीच संबंध अच्छे होने के कारण क्रामाकपा ने तीस्ता बाढ़ पीड़ितों के लिए पुनर्वास और रोजगार की व्यवस्था करने का सुझाव प्रस्तुत किया, लेकिन तीस्ता बाढ़ के आठ महीने बीत जाने के बाद भी, पीड़ितों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। गौरतलब है कि 4 अक्टूबर 2023 को तीस्ता नदी की बाढ़ से सिक्किम के विभिन्न इलाकों समेत दार्जिलिंग के तीस्ता बाजार, रंगपो आदि इलाकों में भारी नुकसान हुआ था। सिक्किम सरकार ने स्थिति की ओर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित किया और आपदा घोषित कर पीड़ितों को पुनर्वास, सहायता और राहत प्रदान करने के प्रयास तेज कर दिए।

क्रामाकपा के केंद्रीय महासचिव लामा ने आरोप लगाया कि बंगाल सरकार ने इस संकट को आपदा घोषित ही नहीं किया। उन्होंने कहा कि तीस्ता में 10 जून से बाढ़ आई हुई है। तीस्ता नदी के आसपास के गांवों और बाजारों की स्थिति काफी चिंताजनक हो गई है। इस स्थिति में भी बंगाल सरकार ने उचित कदम नहीं उठाया है। कुछ हफ्ते पहले जब तूफान ने जलपाईगुड़ी जिले के कुछ हिस्सों में घरों को नष्ट कर दिया था, तो राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी घटनास्थल पर पहुंचीं और मदद और राहत की घोषणा की। बंगाल के अन्य मंत्रियों ने भी घटना स्थलों का दौरा किया लेकिन तीस्ता के तटीय इलाके में रहने वाले पीड़ितों की स्थिति के बारे में पूछताछ नहीं की। हाल ही में 17 जून को सिलीगुड़ी के रंगापानी में हुए ट्रेन हादसे में जान गंवाने वालों को 10 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को 2 लाख 50 हजार रुपये और अन्य को 50 हजार रुपये दिए गए। केंद्र और राज्य सरकार के कई मंत्री और अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे, लेकिन आज गोरखाओं पर इतनी बड़ी दुर्घटना होने के बावजूद भी न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार को इसकी सुध आई है। यह अत्यंत दुखद है, गोरखाओं के प्रति भेदभावपूर्ण नीति का स्पष्ट रूप है। यह हमारे साथ अन्याय हो रहा है।

नरबू लामा ने कहा कि गोरखाओं के साथ इस तरह के भेदभाव और अन्याय के कारण क्रामाकपा ने मांग उठाई है कि अलग गोरखालैंड राज्य का गठन किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि जीटीए प्रमुख अनित थापा कितना भी कहें कि वह राज्य सरकार के साथ काम करेंगे, हमारे प्रति उनकी मिलीभगत वाली नीति इसी तरह जारी रहेगी। आठ महीने तक भी तीस्ता पीड़ितों का पुनर्वास नहीं करने, सुविधाएं नहीं देने से यह स्पष्ट है कि हमारे बारे में उनका दृष्टिकोण अलग है। लामा ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक गोरखाओं की अपनी अलग व्यवस्था नहीं होगी, जब तक उनका अलग राज्य नहीं होगा, तब तक गोरखाओं को भीख मांगते रहना होगा और दूसरों पर निर्भर रहना होगा।

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