गंगटोक । सिक्किम उच्च न्यायालय ने पोक्सो मामले में विशेष ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए एक व्यक्ति को सजा से बरी कर दिया है। सिक्किम उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति मीनाक्षी मदन राई व न्यायमूति भाष्कर राज प्रधान की खंडपीठ ने दोषी अपीलकर्ता की याचिका पर यह फैसला सुनाया है।
5 जून को सिक्किम उच्च न्यायालय ने पोक्सो कानून के तहत सजा के खिलाफ अपीलकर्ता की अपील पर फैसला करते हुए कहा, .हमारी राय में, साढ़े तीन साल की बच्ची मुश्किल से समझ पाएगी कि कोई व्यक्ति उसके निजी अंग को कैसे छू रहा है, वह यह समझकर कैसे घबरा जाएगी कि यह यौन उत्पीड़न है, यह वास्तव में आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय है।
अपीलकर्ता को पहले विशेष ट्रायल कोर्ट ने साढ़े तीन साल की बच्ची के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले में पोक्सो कानून की धारा 5 (एम) के तहत दोषी करार दिया था। हालांकि, न्यायमूर्ति मीनाक्षी मदन राई और न्यायमूर्ति भास्कर राज प्रधान की खंडपीठ ने अपीलकर्ता को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष अपराध किए जाने की संभावना भी नहीं दिखा पाया।
गौरतलब है कि एफआईआर एक अन्य पोक्सो मामले की जांच के दौरान दर्ज की गई थी, जिसमें अपीलकर्ता ने कथित तौर पर एक नौ वर्षीय लडक़े का यौन उत्पीड़न किया था, जो वर्तमान मामले में पीड़िता का भाई है और कथित अपराध का मुख्य गवाह है।
हाई कोर्ट ने मौजूदा मामले में अभियोजन पक्ष के गवाहों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य में कई विसंगतियों को नोट किया। इसमें पीड़िता के भाई और उसकी मांग के बयानों में बेमेल शामिल रहे। शुरुआत में, जहां पीड़िता के भाई ने मजिस्ट्रेट को बताया था कि अपीलकर्ता ने पीड़िता के मुंह और गुप्तांग में अपना लिंग डाला था, वहीं, मुकदमे के दौरान उसने दावा किया कि अपीलकर्ता ने अपनी उंगली उसके गुप्तांग में डाली थी।
इसके अतिरिक्त, पीड़िता के पिता ने कहा कि उनके बेटे ने उन्हें बताया कि अपीलकर्ता ने उनकी बेटी के जननांगों को छुआ और उनके साथ खेला। इसके अलावा, भाई का बयान उसकी मां के बयान से भी मेल नहीं खाता है। जिसने उसने कहा था कि, उसने अपनी बेटी को घबराहट की स्थिति में पाया। ऐसे में, मां के दावे के बारे में अदालत ने टिप्पणी की कि यह संभव नहीं है कि साढ़े तीन साल की बच्ची समझ सके कि यौन उत्पीड़न क्या होता है।
अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने नाबालिग बच्ची पर कथित यौन उत्पीड़न के अलग-अलग बयान दिए हैं जिनकी पुष्टि उनकी गवाही नहीं करती है। अदालत ने यह भी कहा कि माता-पिता ने घटना के बारे में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई, न ही उन्होंने किसी को इसके बारे में बताया। मजिस्ट्रेट के सामने भाई के बयान की रिकॉर्डिंग के दौरान ही उसने अपनी बहन से जुड़ी घटना का जिक्र किया।
अदालत ने टिप्पणी की कि अपराध का आरोप एक बाद का विचार प्रतीत होता है, जैसा कि पहले ही चर्चा की गई अस्थिर साक्ष्य के प्रकाश में है, जिस पर दोषसिद्धि के निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता है। पोक्सो कानून की धारा 29 के बावजूद, जो अभियुक्त के दोषी होने की धारणा प्रदान करती है, अभियोजन पक्ष अपराध किए जाने की संभावना भी स्थापित करने में असमर्थ रहा।
अदालत ने कहा, तथ्यों और परिस्थितियों के प्रकाश में हमारा विचार है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए निर्धारित मानदंड को प्राप्त करने में विफल रहा है। हम पोक्सो कानून की धारा 29 के प्रावधानों के प्रति सचेत और जागरूक हैं; हालांकि, हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि साक्ष्य अपराध किए जाने की संभावना भी स्थापित नहीं करते हैं। किसी भी स्थिति में, यह कथित पीड़िता का बयान नहीं है कि उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था। उल्लेखनीय है कि ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद अपीलकर्ता गंगटोक के पास रोंगयेक सेंट्रल जेल में बंद था।
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