गंगटोक । सिक्किम में रविवार को विधानसभा चुनावों के ऐसे नतीजे आए कि उसकी राज्य में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले दिग्गज मुख्यमंत्री Pawan Chamling और उनकी पार्टी Sikkim Democratic Front (एसडीएफ) ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। पांच बार मुख्यमंत्री रहे चामलिंग ने इस चुनाव में न सिर्फ अपनी दोनों सीटें गवांई है, बल्कि उनकी पार्टी एसडीएफ को भी करारी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में इस चुनावी नतीजे ने चामलिंग तथा उनकी पार्टी एसडीएफ के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
रविवार को संपन्न हुई मतगणना में राज्य की कुल 32 विधानसभा सीटों में से एक को छोडक़र सभी में एसडीएफ की पराजय हुई है। 73 वर्षीय चामलिंग खुद भी नामचेबुंग और पोकलोक-कामरांग से चुनाव हार गए हैं। ऐसे में 40 साल में यह पहली बार होगा जब आठ बार विधायक रह चुके चामलिंग सिक्किम विधानसभा में अपना पैर नहीं रख पाएंगे।
बहरहाल, सिक्किम विधानसभा चुनाव के यह नतीजे एसडीएफ समर्थकों को निराश कर सकते हैं, लेकिन एक समय में बहुत शक्तिशाली क्षेत्रीय नेता रहे चामलिंग का पतन पांच साल पहले उस समय ही शुरू हो गया था, जब 2019 के विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद 12 विधायकों ने उनकी पार्टी छोड़ दी थी। उनमें से दस भाजपा में शामिल हो गए थे और दो ने एसकेएम में शरण ली थी। उस समय, एसडीएफ में एकछत्र राज चलाने वाले चामलिंग को खुद के लिए संघर्ष करना पड़ा। लेकिन, एसकेएम और भाजपा ने पंचायत और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को भी पार्टी से अलग किया और एसडीएफ में बिखराव इतनी गहरी हो गई कि अंतर्राष्टï्रीय ख्यातिप्राप्त फुटबॉलर बाइचुंग भूटिया के शामिल होने के बाद भी चामलिंग फिर उठ नहीं सके। पूरी दुनिया में किसी भारतीय राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड रखने वाले चामलिंग का यह पतन सच में काफी विस्मयकारी है।
करारी हार का यह स्वाद चखने से पहले, 2019 में मुख्यमंत्री और एसडीएफ के संस्थापक अध्यक्ष पवन चामलिंग का ट्रैक रिकॉर्ड स्वयं उनके राजनीतिक कद की गवाही देता है। उन्होंने लगभग एक चौथाई सदी तक सिक्किम का निर्बाध नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने 1977 और 2000 के बीच पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के 23 साल और चार महीने के कार्यकाल के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। बसु की तरह, जिन्हें वे आदर्श मानते हैं, चामलिंग ने दिसंबर 1994 से सिक्किम में अपनी पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को लगातार पांच कार्यकालों तक सत्ता में पहुंचाया।
ये एक राजनेता के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, जिन्होंने 1982 में यांगांग ग्राम पंचायत के अध्यक्ष चुने जाने से सिक्किम की राजनीति में शुरुआत की थी। 1985 में, चामलिंग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नर बहादुर भंडारी के नेतृत्व वाली सिक्किम संग्राम परिषद के टिकट पर अपने गृह जिले दक्षिण सिक्किम के दामथांग विधानसभा सीट से सिक्किम विधानसभा के लिए अपना पहला चुनाव जीता। राजनेता के रूप में उनकी यात्रा 1989 में तब और परवान चढ़ी, जब मुख्यमंत्री और एसएसपी सुप्रीमो भंडारी ने उन्हें उद्योग, सूचना और जनसंपर्क मंत्री के रूप में नियुक्त किया।
हालांकि, दोनों नेताओं के बीच दोस्ती लंबे समय तक नहीं चली, क्योंकि चामलिंग ने भंडारी की नेतृत्व शैली पर सवाल उठाए। उसके बाद भंडारी ने चामलिंग को अपनी पार्टी सिक्किम संग्राम परिषद और 1992 में अपनी सरकार से भी बर्खास्त कर दिया। तब तक चामलिंग राज्य की राजनीति में अपनी जगह बना चुके थे और अपनी अलग पहचान बनाने के लिए तत्पर थे।
इसके बाद ही 1993 में चामलिंग ने एसडीएफ की स्थापना की और अगले ही साल 1994 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की। तब से उनका कद बढ़ता रहा और उन्होंने 1999, 2004, 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में एसडीएफ को सफलतापूर्वक जीत दिलाई। यह कहना गलत नहीं होगा कि सार्वजनिक जीवन के प्रति एसडीएफ नेता के लचीले दृष्टिकोण ने उन्हें 1994 से सभी केंद्र सरकारों के साथ समान रूप से व्यवहार करने और अपने गृह राज्य के लिए सर्वोत्तम संभव वित्तीय सहायता प्राप्त करने में मदद की है। वे शायद एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने पिछले 25 वर्षों में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से लेकर नरेंद्र मोदी तक छह प्रधानमंत्रियों के साथ बातचीत की है, जो उनकी दीर्घकालिता को दर्शाता है।
अपनी चुनावी सफलताओं के अलावा, चामलिंग अपने वक्तृत्व कौशल और लंबे भाषण देने की क्षमता के लिए भी जाने जाते थे, जिसके दौरान वे चुटकुले सुनाते थे, बोलचाल के वाक्यांशों का उपयोग करते थे और दर्शकों के साथ विकास और कल्याण के अपने दृष्टिकोण को साझा करते थे। वहीं, शैक्षणिक योग्यता के तौर पर केवल मैट्रिक पास होने के बावजूद चामलिंग एक अच्छे लेखक और कवि भी रहे हैं जिन्होंने नेपाली भाषा में अपनी रचनाएं लिखी हैं।
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