जगन दाहाल
गंगटोक । ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की सफाई और स्वच्छता में विभिन्न राष्ट्रीय अवार्ड हथियाने वाला पूर्वोत्तर का हिमाली राज्य सिक्किम आज सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
आज भारत के कई बड़े शहर जीरो वेस्ट और जीरो लैंडफिल नीति को गोद लेकर काम कर रहे हैं, लेकिन सिक्किम आज की तारीख में एकत्रित अपशिष्ट के प्रबंधन में चूकता नजर आ रहा है। राज्य के 6 जिलों के कचरा प्रबंधन के लिए केवल 2 लैंडफिल है। इनमें से गंगटोक जिला के लोअर मार्ताम स्थित लैंडफिल सबसे ज्यादा विवादित और चुनौतीपूर्ण है। स्थानीय नागरिक इसके स्थानांतरण की मांग कर रहे हैं, लेकिन जमीन के अभाव के कारण राज्य सरकार और संबंधित निकाय इसे स्थानांतरित करने में असफल हैं। कचरा प्रबंधन के लिए उचित पूर्वाधार और तकनिकी संसाधन की कमी के कारण आज लैंडफिल परिसर के करीब 4 गंव विभिन्न रोगों का शिकार हो रहे हैं।
मार्ताम के लैंडफिल में इसकी क्षमता से ज्यादा कचरा एकत्रित हो रहा है। यह स्थान गंगटोक शहर के लिए डिजायन किया गया था। यह क्षेत्र प्रतिदिन 42 मीट्रिक टन कचरा वहन कर सकती है लेकिन यहां पाकिम, नामची और मंगन जिले के शहरी और ग्राम पंचायत क्षेत्रों से प्रतिदिन 72 मीट्रिक टन कचरा एकत्रित होता है। कुल मिलाकर 30 प्रतिशत कचरा प्रतिदिन गंगटोक से बाहर से आ रहा है। यहां तैनात 70 कर्मचारी बेचने योग्य सामग्री निकालते हैं जिसकी मात्रा केवल एक से डेड़ मीट्रिक टन रहती है। यह स्थिति पिछले 18 सालों से यानी वर्ष 2006 से चली आ रही है। इस चुनौती से लड़ने के लिए प्रत्येक जिले को अपना कचरा प्रबंधन खुद करना होगा। इसके लिए राज्य सरकार की इच्छाशक्ति की भी आवश्यकता है। सरकारी बजट के बिना समस्या का समाधान नामुमकिन है।
गंगटोक नगर निगम (जीएमसी) के सहायक अभियांता (लैंडफिल) डीआर ढकाल बताते है कि लैंडफिल समस्या की समाधान के लिए एशियन विकास बैंक (एडीबी) बायो माइनिंग परियोजना चला रही है। सबसे बड़ी चुनौती है अपर्याप्त जमीन। लैंडफिल के लिए करीब 9 हैक्टेयर जमीन की आवश्यकता है। लेकिन मार्ताम में कुल 4 हैक्टेयर जमीन है, जिसमें केवल एक हेक्टेयर जमीन में लैंडफिल संचालित है। डीएबी ने जमीन की समस्या को सुलझाने के लिए निचले भाग से सात मीटर ऊंची दीवार बनार्ठ है, ताकि आगामी 2035 तक कचरा एकत्र करने और प्रबंधन में समस्या न हो। इसमें अतिरिक्त 3 मीटर की दीवार बनाकर 2040 तक समस्या का अस्थायी समाधान करने की तैयारी है। ढकाल कहते हैं कि बायोमाइनिंग का उद्देश्य राजस्व बढ़ाना है। इससे निकली विभिन्न सामग्रियों को बेचा जा सकता है। जीएमसी से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार से अपशिष्ट प्रबंधन निगम गठन करने की मांग भी हुई है।
कचरे का सही प्रबंधन प्रत्येक नागरिक की जागरुकता से हो सकता है। इसपर सिक्किम के डा हरि शर्मा कहते हैं कि यह वैश्विक समस्या है जिससे निपटने के लिए प्रत्येक नागरिकों को जागरूक होना चाहिए। घर में प्रयोग किए गए सूखे कचरे और जैविक कचरे को अलग-अलग कूड़ेदान में रखना चाहिए। सड़ने वाले सामग्री का खाद बनाया जाएगा। जो नहीं सड़ते है जैसे प्लाष्टिक, कपड़े ई-वेस्ट आदि इन्हें अपशिष्ट-व्युत्पन्न ईंधन (आरडीएफ) के रूप में प्रयोग के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेचा जा सकता है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि जब शहर और गांव से एकत्रित कचरा लैंडफिल पहुंचाया जाता है तो वहां के कर्मचारी मूल्यवान (जिसे बेचा जा सके) ऐसे सामग्री को अलग करते हैं। इसके बाद कचरे को फैलाकर सुखाया जाता है। सुखाने के बाद बायोमाइनिंग के लिए जड़ित मशीन में डाल दिया जाता है। मशीन खुद प्लास्टिक और कपड़े जैसे न सड़ने वाली सामग्री को अलग कर देती है। इसके बाद दूसरी मशीन पत्थर, हड्डियां जो मिट्टि में मिलते हैं, ऐसी सामग्री को अलग कर देती है और तीसरी मशीन सड़ने वाले अपशिष्ट को जैविक खाद के रूप में परिणत कर देती है। सिक्किम एक हिमाली राज्य होने के कारण यहां का मौसम परिवर्तनशील रहता है। कचरा सूखने में समय लगता है। इस कारण सड़ने वाले और न सड़ने वाले कचरे को अलग करना आवश्यक होता है।
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