गंगटोक । सिक्किम में 1994 के बाद सच्चे मायने में महिलाओं की स्थिति सुधरी है और यह SDF पार्टी के नेता एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पवन चामलिंग द्वारा महिलाओं के प्रति सम्मानपूर्वक नजरिये और दूरदर्शिता का ही नतीजा है कि आज राज्य की महिलाओं को एक के बाद एक सभी अधिकार मिल रहे हैं। यह सर्वविदित है कि एसडीएफ अपने प्रथम कार्यकाल से ही महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। यह कहना है एसडीएफ नेता टीका पांडे का जिन्होंने महिला स्वतंत्रता एवं महिला अधिकारों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ये बातें कहीं हैं।
श्रीमती पांडे के अनुसार, महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से महिला अधिकार और महिला स्वतंत्रता एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन एक-दूसरे के प्रति इनके विचार अलग-अलग हैं। यदि अधिकार एक विकल्प है जिसे केवल लड़कर ही लिया जा सकता है, तो स्वतंत्रता उस गौरवशाली क्षमता को साबित करने का एक अवसर है जो विपरीत लिंग के साथ समान स्तर पर खड़े होने से प्राप्त होती है। वहीं सिक्किमी समाज में महिला सशक्तिकरण, स्वतंत्रता और अधिकारों के बारे में उन्होंने कहा कि हमारा सिक्किमी समाज कभी भी महिला विरोधी नहीं था, न है और न ही होगा। इसका कारण यह है कि अब तक यहां महिलाओं को बिना किसी आंदोलन या संघर्ष के उनके अधिकारों की गारंटी देने की अनेक व्यवस्थाएं और योजनाएं बनी हैं। वहीं, एक सशक्त महिला का उदाहरण पेश करते हुए पूर्व लोकसभा सांसद श्रीमती दिलकुमारी भंडारी संसद भवन के अंदर शेर बनकर खड़ी हो गईं और नेपाली भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करा दिया। यह राष्ट्रीय एवं संवैधानिक भाषा एवं महिला सशक्तिकरण का अद्भुत उदाहरण है।
उन्होंने कहा, श्रीमती कलावती सुब्बा का 1994-1999 की अवधि के दौरान सिक्किम विधानसभा अध्यक्ष बनना भी राज्य के राजनीतिक इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है। एसडीएफ नेता पवन चामलिंग के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कार्यकाल में ही उन्हें यह सम्मान मिला। इसी कार्यकाल के दौरान एसडीएफ और चामलिंग सरकार ने श्रीमती आर अंग्मो को राज्य की पहली महिला मंत्री बनाकर महिला सशक्तिकरण की राह को मजबूत किया। पांडे ने आगे कहा, पवन चामलिंग के नेतृत्व में ही पहले पंचायती राज में और उसके बाद शहरी स्थानीय निकायों में भी महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की गईं। ऐसे में हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि एसडीएफ सरकार सिक्किम की महिलाओं को नेतृत्व, सार्वजनिक सेवा और प्रशासनिक कौशल विकसित करने के अवसर प्रदान करने में सफल रही है। इसके अलावा राज्य की महिलाओं के हक, हित और समानता के लिए एसडीएफ सरकार की कई नीतियों ने सिक्किमी समाज को बदल दिया है। पैतृक संपत्ति पर बेटी को अधिकार देने की व्यवस्था, सरकारी दस्तावेजों में मां का नाम दर्ज करने की व्यवस्था, घर की मुखिया महिला के नाम पर प्रत्येक सरकारी अनुदान देने की व्यवस्था, राज्य महिला आयोग का गठन आदि ऐसे कई उदाहरण हैं। ऐसे में पांडे ने राज्य की महिलाओं से इन मुद्दों पर गंभीरता से सोचने और इन अधिकारों और लाभों की रक्षा करने का आग्रह किया।
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