दार्जिलिंग, 31 अक्टूबर । पिछले 6 महीनों से बंद पड़े दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी के भविष्य को लेकर आवाज उठाते हुए गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के सभासद एवं पूर्व चेयरमैन विनय तमांग ने आज कहा कि इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व और औचित्य अब खत्म होता जा रहा है, जो बहुत चिंता का विषय है। इसके साथ तमांग ने दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी को पुनर्जीवित करने हेतु कई सुझाव भी दिए हैं।
एक प्रेस विज्ञप्ति में तमांग ने कहा है कि दार्जिलिंग पहाड़ के लोग हमेशा पश्चिम बंगाल की राजनीति का शिकार होते रहे हैं और आज शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में भी यह हम पर हावी हो गई है। उन्होंने कहा कि पिछले छह महीने से कुलपति न होने के कारण दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी में पठन-पाठन बंद है और ऐसे में इसके स्थायी रूप से बंद होने की संभावना है। पिछले दो वर्षों से यह विश्वविद्यालय बिना स्थायी कुलपति के तदर्थ आधार पर चल रहा है। हालांकि 1955 से ही पहाड़ में एक अलग विश्वविद्यालय की मांग हो रही थी, लेकिन दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी स्थानीय लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाया है। हालांकि सितंबर 2016 में मंगपु के जोगीघाट में नए विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया गया था, लेकिन आज तक इसका भवन निर्माण नहीं हो पाया है। यह बंगाल सरकार की कमजोरी है। वहीं, अस्थायी आधार पर मंगपू आईटीआई भवन के उपयोग की प्रारंभिक योजना भी विफल रही है। यह स्थानीय गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन की उपेक्षा का परिणाम है।
तमांग ने कहा, पिछले वर्ष गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के मुख्य कार्यकारी एवं अन्य उच्च पदस्थ लोगों ने दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी के तत्कालीन मनोनीत कुलपति एवं उनकी टीम के साथ विभिन्न जगहों का दौरा करते हुए फोटो खिंचवाये थे। उस समय उनलोगों के द्वारा की गई बड़ी-बड़ी बातें आज बेकार साबित हो चुकी हैं। प्रशासनिक अज्ञानता एवं प्रशासनिक तंत्र संचालन में असमर्थता इन समस्याओं का मुख्य कारण है। उन्होंने कहा, ऐसा कर हमारे पहाड़ के छात्रों के भविष्य के साथ जो बहुत बड़ा खेल खेला जा रहा है, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों और कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो रही है और ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने के लिए एनबीयू और अन्य कॉलेजों के प्रोफेसरों पर जिम्मेदारी छोड़ दी गई है। लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें अभी भी इसमें उचित प्रतिफल नहीं मिल रहा है। जून महीने में विश्वविद्यालय में अंतिम कुलपति डॉ प्रेम पोद्दार का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यह पद खाली था, लेकिन हाल ही में राज्यपाल ने एक अंतरिम कुलपति नियुक्त किया है।
इसके साथ ही दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी को पुनर्जीवित करने हेतु सुझाव देते हुए जीटीए सभासद ने आगे कहा कि विश्वविद्यालय में ऑफलाइन कक्षाएं संचालित करने और छात्रों व कर्मचारियों के लिए आवास की सुविधाओं के साथ एक परिसर जल्द से जल्द स्थापित किया जाना चाहिए। नए विषयों के लिए आवश्यक पदों सहित प्रशासनिक और शैक्षणिक पदों का आवंटन के साथ ही विश्वविद्यालय के बुनियादी संचालन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान किए जाने और मंगपु के जोगीघाट में विश्वविद्यालय परिसर का निर्माण युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए। यह निर्माण पूरा नहीं होने तक पुराने सर्वे के अनुसार आईटीआई मंगपु, तकदाह इंजीनियरिंग कॉलेज भवन और दार्जिलिंग गोरखा रंगमंच भवन का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने शिक्षा क्षेत्र को राजभवन और नवान्न के मतभेदों से अलग रखने की भी बात कही।
तमांग ने यह भी कहा कि पिछले दो अक्टूबर को राज्यपाल के कार्यालय से छह विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति की गई है, लेकिन दुर्भाग्य से दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी के अंतरिम कुलपति के रूप में एक गैर-शैक्षणिक व्यक्ति को नियुक्त किया गया है। यह अंतरिम कुलपति सीएम रवींद्रन एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं जिन्हें शिक्षण पेशे का कोई अनुभव नहीं है। क्या यूजीसी मानदंडों में किसी गैर-शैक्षणिक व्यक्ति को विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त करने का प्रावधान है? ऐसे में यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि क्या दार्जिलिंग पहाड़ उपेक्षित हैं? हालांकि इस संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा दायर की गई एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। मेरा अनुरोध है कि दोनों पक्ष दार्जिलिंग पहाड़ पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करें। इसके साथ ही तमांग ने दार्जिलिंग हिल्स यूनिवर्सिटी और इसकी समस्याओं के संबंध में शीघ्र ही पश्चिम बंगाल राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और विश्वविद्यालय के अन्य उच्च अधिकारियों को पत्र लिखने की भी बात कही।
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