दार्जिलिंग, 29 अक्टूबर । संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले अलग गोरखालैंड राज्य गठन की मांग को लेकर पहाड़ के साथ-साथ राजधानी नई दिल्ली में भी एक बार फिर राजनीतिक सरगर्मी तेज होने वाली है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि गोरखालैंड एक्टिविस्ट ग्रुप ने अपनी इस मांग के साथ राजधानी नई दिल्ली आदि में धरना प्रदर्शन करने का फैसला किया है। इस संबंध में तैयारियों पर चर्चा हेतु संगठन द्वारा शीघ्र ही कालिम्पोंग में एक बैठक भी बुलाई गई है।
इस संबंध में गोरखालैंड एक्टिविस्ट ग्रुप के नेता विक्रम छेत्री ने कहा कि गोरखाओं की लंबे समय से चली आ रही अलग राज्य गोरखालैंड गठन की मांग पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए हमने संसद के शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले नई दिल्ली में धरना-प्रदर्शन आदि कार्यक्रम आयोजित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, हम अपने गठन के समय से ही अलग गोर्खालैंड राज्य की मांग का समर्थन करते आ रहे हैं। अपनी इस मांग का समथर्न करने के कारण ही पहाड़ वासियों ने तीन-तीन बार भाजपा को दार्जिलिंग संसदीय सीट से जीत दिलवाई है। लेकिन इसके बावजूद हमारी यह मांग अभी भी अधूरी ही है। ऐसे में इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए ही हमने नई दिल्ली में आंदोलन करने का निर्णय लिया है। हमारा मुख्य उद्देश्य संसद में गोर्खालैंड राज्य गठन का बिल पेश करवाना है। छेत्री ने बताया कि नई दिल्ली में धरना-प्रदर्शन कार्यक्रमों पर चर्चा के लिए ही हम अगले कुछ दिनों में कालिम्पोंग में बैठक करेंगे।
उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा छोटे राज्यों के गठन का पक्षधर होने के कारण ही 2009 में पहाड़ के गोर्खालैंड समर्थकों ने भाजपा नेता जसवंत सिंह को दार्जिलिंग लोकसभा सीट से विजयी बनाया था। लेकिन उस समय केंद्र में भाजपा की सरकार नहीं बन पाई थी। उसके बाद 2014 और 2019 में भी दार्जिलिंग संसदीय सीट से भाजपा के उम्मीदवार क्रमश: एसएस अहलूवालिया और राजू बिष्ट चुनाव जीते और केंद्र में भाजपा की सरकार भी बनी। वहीं भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में पहाड़ तराई एवं डुवार्स की मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने का लिखित आश्वासन भी दिया, लेकिन 2017 के आंदोलन के बाद भी इस संबंध में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। हालांकि, सांसद बनने के बाद राजू बिष्ट ने कई बार लोकसभा में पहाड़ के हित में सवाल उठाए हैं। लेकिन इन सभी के बावजूद पहाड़वासी कथित तौर पर अब यह मानने लगे हैं कि भाजपा का अपने संकल्प पत्र में लिखित आश्वासन केवल एक दिखावा मात्र रह गया है।
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