नई दिल्ली, 23 सितम्बर (एजेन्सी)। उच्चतम न्यायालय के Justice S Ravindra Bhat ने किशोर न्याय प्रणाली में हर संस्थान के अपनी क्षमता से कम काम करने पर शनिवार को चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में रिक्तियां होने का प्रभाव पड़ता है, जो बाल संरक्षण के मामलों में इन निकायों को कागजी शेर में बदल सकती हैं।
किशोर न्याय एवं बाल कल्याण पर उच्चतम न्यायालय की समिति के प्रमुख न्यायमूर्ति भट ने अपने दो दिवसीय राष्ट्रीय परामर्श के उद्घाटन सत्र के दौरान इस मुद्दे को केंद्र में रखा और कर्मचारियों एवं अधिकारियों की कमी के कारण संस्थानों के बंद होने की स्थिति में व्यवस्था के टूटने के प्रति आगाह किया।
समिति द्वारा 23 और 24 सितंबर को राज्यों में अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं और कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के लिए न्याय प्रणाली को और मजबूत करने पर राष्ट्रीय परामर्श आयोजित किया गया है। उद्घाटन समारोह में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बी वी नागरत्ना और यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मैककैफ्रे सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
उन्होंने कहा, ‘हर संस्थान- चाहे वह किशोर न्याय बोर्ड हो या बाल कल्याण समितियां या ऐसे अन्य संस्थान- इस अर्थ में अपनी क्षमता से नीचे चल रहे हैं कि उनमें से ज्यादातर में बड़ी संख्या में रिक्तियां हैं। न्यायमूर्ति भट ने अपने मुख्य संबोधन में कहा, ये रिक्तियां वास्तव में सिस्टम को बहुत दुर्बल और पंगु बनाती हैं। बाल कल्याण समितियां पूरी ताकत के साथ कार्य करने में असमर्थ हैं।’
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश ने कहा, ‘जब तक हम एक साझा प्रोटोकॉल स्थापित नहीं करते और इसे सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं बनाते, तब तक ये संस्थान सिर्फ कागजी शेर बनकर रह जाएंगे।’ न्यायमूर्ति भट ने कहा कि दृष्टिकोण और पहल यह होनी चाहिए कि एक बाल अपराधी को सुधारा जा सकता है और उसे सुधारा जाना चाहिए और इसलिए सुधार उनके लिए लिए गए सभी फैसलों का प्राथमिक चालक होना चाहिए।
वहीं, इस मौके पर न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने कहा कि किशोर अपराधी जन्मजात अपराधी नहीं होते हैं, बल्कि माता-पिता या सामाजिक उपेक्षा के शिकार हो जाते हैं और इसलिए प्रत्येक नागरिक को उन बच्चों की मदद करने का संकल्प लेना चाहिए, जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है या जो कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि एक बच्चे को मदद पाने के लिए पहले अपराध नहीं करना चाहिए और पर्याप्त सामुदायिक सहायता ढांचे के बिना किशोरों के सर्वोत्तम हित को सुरक्षित नहीं किया जा सकता है।
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