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जन्‍म प्रमाणपत्र के एकल कानूनी दस्‍तावेज बनने से अनुच्‍छेछ 371F होगा प्रभावित : पासांग शेरपा

गंगटोक, 19 सितम्बर । केंद्र सरकार द्वारा जन्म प्रमाणपत्र को एकल कानूनी दस्तावेज के तौर पर सक्षम बनाने की दिशा में आगामी एक अक्टूबर से जन्म और मृत्यु पंजीकरण संशोधन कानून, 2023 लागू हो जाएगा। यह कानून शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने, राज्य व केंद्र सरकारी नौकरियों, आधार कार्ड और मतदाता नामांकन सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए एकमात्र कानूनी कागजात के रूप में कार्य करेगा। ऐसे में, सिक्किम के राजनीतिक कार्यकर्ता पासांग शेरपा का कहना है कि यह संशोधित कानून राज्य में लागू मौजूदा कानूनों, खास कर अनुच्छेद 371F पर इसके प्रभाव को लेकर चिंता पैदा कर रहा है।

सिक्किम नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए शेरपा ने सोमवार को यहां मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि सिक्किम में पहले से ही अनुच्छेद 371एफ के तहत नियम 4(4) मौजूद है, जो केवल पहचान प्रमाणपत्र और सिक्किम सब्जेक्ट दस्तावेज धारकों को सरकारी नौकरियां देने की अनुमति देता है। लेकिन, अब जन्म प्रमाणपत्र के इस देशव्यापी नए कानून से सिक्किम में लागू नियम 4(4) को दीर्घावधि नुकसान पहुंचने की संभावना है। उन्होंने कहा, ऐसे में हम सिक्किम सरकार और राजनीतिक पार्टियों को इस बारे में अपने विचार से अवगत करा रहे हैं।

शेरपा ने यह भी उल्लेख किया कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने हाल ही में संसद में यह भी कहा है कि इस मुद्दे पर सभी राज्य सरकारों के साथ परामर्श किया गया था और उनमें से किसी ने भी कानून में संशोधन पर आपत्ति नहीं जताई है।

इसके अलावा, शेरपा ने सिक्किम में अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) को लागू करने वाले वित्त विधेयक 2023 के पारित होने पर भी प्रकाश डालते हुए कहा, उस पृष्ठभूमि पर यह एक नई चुनौती है जो सिक्किम और इसके पुराने कानूनों के सामने आई है। मौजूदा समय में नियम 4(4) एक मजबूत कानून है, लेकिन भविष्य में, इस कानून के अनुसार सिक्किम में पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति राज्य में सरकारी भर्ती में दावा कर सकता है। हमें राज्य के मूल लोगों के लिए जागरुकता पैदा करनी है।

वहीं, इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि यह नया कानून समवर्ती सूची का हिस्सा है, जिसका अर्थ यह है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें इसमें संशोधन कर सकती हैं, शेरपा ने कहा, हम सरकार को इस मुद्दे पर अपने विचार रखने के लिए 10 दिन का समय देते हैं। यदि कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है, तो हम एक सर्वदलीय बैठक कर उसमें पारित प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजेंगे। इसी बीच राज्य सरकार कम से कम भारत सरकार को एक पत्र भेज कर यह कह सकती है कि राज्य में पहले से ही नियम 4(4) है।

पासांग ने यह भी कहा कि नए कानून में शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं होने के बावजूद, ड्राइविंग लाइसेंस और मतदाता सूची जैसे मुद्दों पर इसके संभावित प्रभाव की चिंताएं हैं।

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