महाभारत के समान होगा आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव : विनय तमांग

दार्जिलिंग : वरिष्ठ नेता, पूर्व जीटीए प्रमुख एवं वर्तमान सभासद विनय तमांग (Binay Tamang) ने आगामी 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को महाभारत के महायुद्ध की संज्ञा दी है।

एक प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने कहा कि महाभारत में पांडवों और कौरवों की सेनाओं की तुलना करें तो पांडवों के पास सात अक्षौहिणी सेना थी, जबकि कौरवों के पास ग्यारह अक्षौहिणी सेना थी, अर्थात् संख्या के लिहाज से कौरव अधिक शक्तिशाली थे।

उन्होंने बताया कि पांडवों के मुख्य मार्गदर्शक भगवान श्रीकृष्ण थे, जबकि कौरवों के पक्ष में शकुनी और कर्ण जैसे सलाहकार थे। पांडवों के सेनापति धृष्टद्युम्न थे, वहीं कौरवों की ओर से भीष्म पितामह सेनापति थे। पांडवों की असली शक्ति धर्म और सही रणनीति थी, जबकि कौरवों की ताकत संख्या और अनुभवी महारथियों में निहित थी। इसी आधार पर विनय तमांग ने कहा कि 2026 के बंगाल चुनाव की तुलना महाभारत के युद्ध से करना किसी भी तरह की अतिशयोक्ति नहीं है।

उन्होंने कहा, यह युद्ध पांडवों और कौरवों के बीच होगा। साथ ही उन्होंने जोड़ा कि 2026 का चुनाव केवल भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच का संघर्ष नहीं होगा, बल्कि यह पश्चिम बंगाल की आम जनता द्वारा सही निर्णय लेने और अपने भविष्य को सुनिश्चित करने का भी युद्ध होगा।

विनय तमांग ने कहा कि इस बार के “चुनावी महाभारत” में अनेक महाभारत-रूपी पात्र होंगे। उन्होंने श्रीकृष्ण, धृष्टद्युम्न, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, शकुनी, कृपाचार्य, कर्ण, शिखंडी, सात्यकि, अश्वत्थामा, उत्तमौजा, अभिमन्यु, राजा द्रुपद और उनके पुत्र, मत्स्यराज विराट, मगध के सहदेव, काशीराज, शिशुपाल के पुत्र धृष्टकेतु, घटोत्कच, शल्य, भूरिश्रवा, जयद्रथ, कृतवर्मा, मद्रराज शल्य, सुदक्षिण, राजा श्रुतयुध, विन्द और अविन्द जैसे पात्रों का उल्लेख किया। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वर्तमान राजनीति में इन नामों से उनका संकेत किन व्यक्तियों की ओर है।

उन्होंने यह भी कहा कि कुछ ऐसे पात्र भी होंगे जो बलराम और विदुर की तरह युद्ध से दूर रह सकते हैं-कोई तीर्थयात्रा पर निकल सकता है तो कोई अधर्म को देखकर चुनावी अस्त्र न उठाने का निर्णय ले सकता है। विनय तमांग के अनुसार, 2026 का बंगाल चुनावी महाभारत धर्म बनाम अधर्म, सत्य बनाम असत्य, समानता बनाम असमानता, स्वतंत्रता बनाम पराधीनता, सुशासन बनाम कुशासन, महिला सुरक्षा बनाम असुरक्षा, भाई-भतीजावाद बनाम योग्यता, भ्रष्टाचार बनाम ईमानदारी और शुद्धता, राजनीतिक तनाव बनाम राजनीतिक स्थिरता, पारदर्शिता बनाम अर्ध-पारदर्शिता तथा एकल प्रशासनिक निर्णय बनाम सामूहिक प्रशासनिक निर्णय के बीच का संघर्ष होगा। यही संघर्ष यह तय करेगा कि संवैधानिक, लोकतांत्रिक, राजनीतिक और प्रशासनिक मूल्यों की स्थापना होगी या नहीं, और सामाजिक न्याय का मार्ग खुलेगा या बंद होगा। निर्णय लेने का अधिकार सभी के पास है, सभी स्वतंत्र हैं।

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