तिरुपति । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों आंध्र प्रदेश के तिरुपति में हैं। शुक्रवार को उन्होंने विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की पूजा-अर्चना की। वहीं मंदिर पहुंचने पर तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के अधिकारियों ने उनका स्वागत किया।
दर्शन के बाद, मंदिर के पुजारियों ने रंगनायका मंडपम में मोहन भागवत को रेशमी वस्त्र भेंट कर सम्मानित किया और भगवान का प्रसाद प्रदान दिया। इसको लेकर तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के एक अधिकारी ने कहा, भागवत ने भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन किए और दर्शन के लिए ले जाने से पहले टीटीडी अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। बता दें कि टीटीडी तिरुपति में श्री वेंकटेश्वर मंदिर का आधिकारिक संरक्षक है, जो दुनिया के सबसे अमीर हिंदू मंदिर में से एक है।
इसके बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत वहां से रवाना हुए। वे शुक्रवार से तिरुपति में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाले चार दिवसीय भारतीय विज्ञान सम्मेलन में शामिल होने के लिए पहुंचे। इस कार्यक्रम में केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हुए हैं। यह कार्यक्रम 29 दिसंबर को समाप्त होगा।
कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को विज्ञान और धर्म के अंतर्संबंधों पर अपने विचार साझा किए। भारतीय विज्ञान सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान और धर्म के बीच कोई टकराव नहीं है, क्योंकि दोनों ही अलग-अलग रास्तों से एक ही सच्चाई की तलाश करते हैं। उन्होंने कहा धर्म को अक्सर गलत समझा जाता है, जबकि यह असल में ‘सृष्टि के कामकाज को नियंत्रित करने वाला विज्ञान’ है। उन्होंने कहा, धर्म कोई संप्रदाय नहीं है। यह वह कानून है जिससे सृष्टि चलती है। चाहे कोई इसे माने या न माने, कोई भी इसके दायरे से बाहर रहकर कार्य नहीं कर सकता।’ उन्होंने यह भी कहा, धर्म में असंतुलन पैदा होना विनाश की ओर ले जाता है।
उन्होंने कहा कि विज्ञान ने ऐतिहासिक रूप से धर्म से दूरी बनाए रखी, क्योंकि यह माना जाता था कि वैज्ञानिक अनुसंधान में इसका कोई स्थान नहीं है। उन्होंने इस तरह के रुख को मौलिक रूप से गलत बताया। भागवत के अनुसार, विज्ञान और आध्यात्मिकता में एकमात्र अंतर उनकी कार्यप्रणाली में निहित है, क्योंकि दोनों का अंतिम लक्ष्य एक ही है। उन्होंने कहा, विज्ञान और धर्म या आध्यात्मिकता के बीच कोई टकराव नहीं है। इनकी कार्यप्रणाली अलग-अलग हो सकती है, लेकिन लक्ष्य एक ही है- ‘सत्य का ज्ञान’ ।
संघ प्रमुख ने आगे कहा कि विज्ञान बाहरी अवलोकन और प्रयोगों के माध्यम से भौतिक जगत को समझता है, जबकि आध्यात्मिकता अनुशासित आंतरिक अनुभव के माध्यम से उसी सत्य की खोज करती है। उन्होंने आगे कहा आधुनिक विज्ञान अब सार्वभौमिक चेतना की बात कर रहा है, जो प्राचीन भारतीय दर्शन ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ के समान है। उनके अनुसार, विज्ञान पदार्थ को बदलता है और आध्यात्मिकता आंतरिक सूक्ष्म क्षेत्र में सुधार लाती है।
उन्होंने वैज्ञानिक और धार्मिक ज्ञान को मातृभाषा में पहुंचाने पर विशेष जोर दिया। फिनलैंड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अपनी भाषा में शिक्षा पाने से बौद्धिक विकास और समझ बेहतर होती है। उनके अनुसार, भारतीय भाषाओं में धर्म और विज्ञान को व्यक्त करने के लिए ऐसे विशिष्ट शब्द हैं जो अन्य भाषाओं में नहीं मिलते।
पर्यावरणीय और वैश्विक चुनौतियों का समाधान देने के लिए उन्होंने भारत को केवल एक आर्थिक या सैन्य ‘महाशक्ति’ बनने के बजाय ‘विश्व गुरु’ बनने का आह्वान किया। भागवत ने कहा कि भौतिक प्रगति को धर्म (नैतिकता और कर्तव्य) के साथ जोड़कर भारत पूरी मानवता को एक नई दिशा दे सकता है और सृष्टि के संरक्षक के रूप में नेतृत्व कर सकता है।
एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘भारतीय विज्ञान सम्मेलन-2025 का उद्देश्य प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक ज्ञान को आधुनिक जरूरतों के अनुसार ढालना और भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक चर्चा को बढ़ावा देना है।’ भारतीय विज्ञान सम्मेलन-2025 का आयोजन विज्ञान भारती के तत्वावधान में केंद्र सरकार के सहयोग से तिरुपति के राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में कई विषयों पर पेपर प्रेजेंटेशन और चर्चाएं हो रही हैं। इसमें देश भर के विश्वविद्यालयों के 1,200 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया है।
इस कार्यक्रम के उद्घाटन से पहले, आरएसएस प्रमुख भागवत ने गुरुवार को तिरुमाला में श्री भूवराह स्वामी का भी दर्शन किया। इसके बाद उन्होंने तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के अध्यक्ष बी आर नायडू के साथ मातृश्री तारिगोंडा वेंगमम्बा अन्न प्रसादम केंद्र में अन्नप्रसादम ग्रहण किया।
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