अंग्रेजों ने बंगाल को ‘बांटो और राज करो’ का प्रयोगशाला बनाया : पीएम मोदी

नई दिल्ली। संसद में आज वंदे मातरम 150वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा हो रही है। चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के साथ हुई। अपने संबोधन के जरिये प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल साधने की कोशिश की। बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।

चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत को बांटने के लिए बंगाल को चुना था। अंग्रेज समझ चुके थे कि 1857 के बाद लंबे समय तक भारत में टिकना उनके लिए मुश्किल है। जिस प्रकार से वो अपने सपने लेकर आए थे, तब उनको लगा कि जब तक भारत को बांटेंगे नहीं, जब तक भारत को टुकड़ों में नहीं बांटेंगे, जब तक भारत के ही लोगों को आपस में नहीं लड़ाएंगे, तब तक राज करना मुश्किल है।

उन्होंने कहा, अंग्रेजों ने बांटो और राज करो, इस रास्ते को चुना और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया। वो एक वक्त था, जब बंगाल का बौद्धिक सामर्थ्य देश को दिशा देता था। देश को ताकत देता था। देश को प्रेरणा देता था। इसलिए अंग्रेज भी चाहते थे कि बंगाल का जो सामर्थ्य है, वो देश की शक्ति का एक प्रकार से केंद्र बिंदु है, इसलिए अंग्रेजों ने टुकड़े करने की दिशा में काम किया। उन्होंने कहा, अंग्रेजों का मानना था कि एक बार बंगाल टूट गया, तो देश भी टूट जाएगा। 1905 में बंगाल का विभाजन किया। जब अंग्रेजों ने 1905 में यह पाप किया, तब वंदे मातरम चट्टान की तरह खड़ा रहा।

विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के लिए वंदे मातरम बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। हाल ही में राज्यसभा के बुलेटिन में सांसदों को सलाह दी गई थी कि वे जय हिंद और वंदे मातरम जैसे नारों का इस्तेमाल न करें। इस पर ममता बनर्जी ने पलटवार किया था। उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, क्यों नहीं बोलेंगे? जय हिंद और वंदे मातरम हमारा राष्ट्रीय गीत है। यह हमारी आजादी का नारा है। जय हिंद नेताजी का नारा है, इससे जो टकराएगा चूर-चूर हो जाएगा।

विधानसभा चुनाव से पहले वंदे मातरम को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है, उससे ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इससे पहले भाजपा ने वंदे मातरम के डेढ़ सौ साल पूरे होने के अवसर देशभर में कई कार्यक्रम किए हैं। पार्टी ने कोलकाता में बंकिंम चंद्र चटर्जी के नाम पर बनी लाइब्रेरी की दुर्दशा का मुद्दा भी उठाया। पार्टी के नेता शुभेंदु अधिकारी बाहर से ही वापस लौट गए थे। इसके बाद लाइब्रेरी के रखरखाव के मुद्दे ने भी तूल पकड़ा है।

इसके अलावा, बंकिंम चंद्र के कोलकाता स्थित घर की हालत भी बेहतर नहीं बताई जाती है। इस घर में उन्होंने जीवन के छह-सात साल गुजारे थे। बाद में अप्रैल 1894 में उनका निधन यहीं हुआ था। टीएमसी ने पूर्व की वाम सरकार से इस घर का अधिग्रहण किया था और 2005 में पुनर्निर्माण कार्य शुरू हुआ। 2006 में इस घर को लाइब्रेरी बना दिया गया। इस लाइब्रेरी में वंदे मातरम के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर कार्यक्रम आयोजित किया गया था। लेकिन गेट न खुलने पर शुभेंदु अधिकारी वापस लौट गए थे। इसके बाद भाजपा ने आरोप लगाया था कि गेट को जानबूझकर नहीं खोला गया।

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