UPSC ने सौ साल से कायम रखी है अपनी गरिमा : डॉ. पीके मिश्र

राजेश अलख

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पीके मिश्र (Dr. PK Mishra) ने आज नई दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग-यूपीएससी के शताब्दी सम्मेलन के पूर्ण सत्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पिछले 100 वर्षों में, संघ लोक सेवा आयोग ने देश के सबसे सम्मानित संवैधानिक संस्थाओं में से एक के तौर पर अपनी गरिमा और विश्वसनीयता कायम रखते हुए, योग्यता, निष्पक्षता, उत्कृष्टता और सत्यनिष्ठा बनाए रखी है। डॉ. मिश्र ने ज़ोर देकर कहा कि आयोग का शताब्दी समारोह संविधान निर्माताओँ और आयोग के प्रारंभिक वर्षों में इसका मार्गदर्शन करने वाले लोगों की विलक्षण दूरदर्शिता के प्रति श्रद्धांजलि है। डॉ. मिश्र ने आयोग के सभी अध्यक्षों, सदस्यों, अधिकारियों और कर्मचारियों के योगदान का उल्लेख किया जिन्होंने चुनौतियों के बाद भी निष्पक्षता से योग्य अभ्यर्थियों का चयन सुनिश्चित किया।

उन्होंने कहा कि भारत के विविध क्षेत्रों से सिविल सेवा में पहुंचे अधिकारियों की कई पीढ़ियों ने बिना किसी मान-सम्मान की आशा के सार्वजनिक कर्तव्य, निष्पक्षता और राष्ट्र सेवा के आदर्शों को आगे बढ़ाया है, संस्थान निर्मित किए हैं, संवहनीयता बनाए रखी है, सुधार लागू किए हैं और संवैधानिक नैतिकता कायम रखी है। डॉ. मिश्र ने यूपीएससी के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसका पूर्ववर्ती 1926 में स्थापित लोक सेवा आयोग था, जिसे बाद में भारत सरकार के अधिनियम, 1935 के तहत संघीय लोक सेवा आयोग बनाया गया और देश की स्वतंत्रता के बाद इसका नाम बदलकर संघ लोक सेवा आयोग-यूपीएससी कर दिया गया। उन्होंने रेखांकित किया कि भारत के “इस्पात ढांचे” माने जाने वाली सिविल सेवाओं के लिए परीक्षाएं आयोजित करना, इसका सबसे अहम कार्य है।

उन्होंने कहा कि कई दशकों में यूपीएससी की परीक्षा पद्धति- निष्पक्षता, योग्यता और समता बनाए रखते हुए आधुनिक शासन के साथ विकसित हुई है। रिक्त पदों पर भर्ती के अलावा, यूपीएससी पदोन्नति, प्रतिनियुक्ति और अनुशासनात्मक कार्यवाहियों में भी सलाहकार संबंधी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

डॉ.. मिश्रा ने हाल ही में आरंभ किए गए प्रतिभा सेतु पोर्टल का उल्लेख किया जो परीक्षा के अंतिम चरण में पहुंचने वाले प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को राष्ट्रीय कैरियर सेवा से जुड़े संभावित नियोक्ताओं के साथ सुरक्षित रूप से जोड़ता है जिससे युवाओं के लिए राष्ट्रीय विकास में योगदान के नए अवसर खुलते हैं।

डॉ. मिश्र ने कहा कि सिविल सेवकों की भूमिका पिछले कई वर्षों से निरंतर विस्तारित हो रही है। उन्होंने रेखांकित किया कि स्वतंत्रता पूर्व और उसके तुरंत बाद, प्रशासन मुख्यतः कानून-व्यवस्था बनाए रखने और राजस्व संग्रह तक ही सीमित था। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि स्वतंत्रता उपरांत आरंभिक दशकों में, सिविल सेवकों की भूमिका विकास नियोजन, संस्थाओं को सुचारू बनाना, औद्योगिक क्षमता बढ़ाना और बुनियादी सेवाएं प्रदान करने पर केंद्रित थी। उन्होंने कहा कि इसके बाद प्रौद्योगिकी के उद्भव, शहरीकरण, जलवायु चुनौतियों और समय-समय पर आने वाली आपदाओं ने सिविल सेवकों के दायित्व को व्यापक बना दिया है। उन्होंने कहा कि आज शासन उच्च से निम्न पदों के अनुक्रम की अपेक्षा सहयोगात्मक समाधान की मांग करता है। उन्होंने कहा कि इस सेवा में पिछले एक दशक में व्यापक बदलाव आया है।

डॉ. मिश्र ने इस बात को रेखांकित किया कि कार्य अपेक्षाएं अब प्रक्रिया अनुपालन से परिणाम प्राप्ति की ओर, वृद्धिशील सुधार से त्वरित परिवर्तनकारी बदलाव की ओर, अलग-थलग सरकारी विभागों से अंतर-संचालनीय डिजिटल ढांचे की ओर, और नागरिकों को सेवा प्रदान करने वाले शासन से जनभागीदारी द्वारा नागरिकों के साथ साझेदारी करने वाले शासन में बदल गई हैं। उन्होंने कहा कि यह बदलाव डिजिटल भुगतान, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, ढांचागत क्षेत्र, लॉजिस्टिक्स, कौशल विकास, कराधान, शहरी शासन और ग्रामीण विकास जैसे सभी क्षेत्रों में स्पष्ट दिख रहा है और अब क्वांटम प्रौद्योगिकियां, अंतरिक्ष नवाचार और नीली एवं हरित अर्थव्यवस्थाएं जैसे उन अग्रणी क्षेत्रों में भी विस्तारित हो रहा है जहां भारत वैश्विक नेतृत्व की महत्वाकांक्षा रखता है।

डॉ. मिश्र ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत 2047 तक विकसित देश की अपनी यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। उन्होंने इस संदर्भ में चार महत्वपूर्ण पहलुओं की चर्चा की। उन्होंने कहा कि पहली बात यह है कि दुनिया में अब अधिक अंतरजुड़ाव है और यह अस्थिर होती जा रही है, जो रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तकनीक, आपूर्ति श्रृंखला, डेटा, साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष और महत्वपूर्ण खनिजों तक के क्षेत्र में व्याप्त है। उन्होंने कहा कि सिविल सेवक अनिश्चितता को प्रबंधित करने, जटिलता को व्याख्यायित करने और भारत के रणनीतिक हितों के संरक्षक बन गए हैं और इसलिए उनकी तैयारी इस बात से शुरू होती है कि वे कैसे चयनित होते हैं।

उन्होंने कहा कि दूसरी बात कि अब तकनीकी बदलाव की गति नियामक अनुकूलन से कहीं आगे पहुंच गई है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सिंथेटिक जीव विज्ञान, रोबोटिक्स और क्वांटम कंप्यूटिंग में सफलताओं से अब तीव्र बौद्धिक चपलता, नैतिकता और नवप्रवर्तकों तथा वैज्ञानिकों के साथ समान रूप से जुड़ने की क्षमता आवश्यक है।

तीसरे पहलू में उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत का विकास पथ इनपुट-आधारित विकास से क्षमता-आधारित विकास की तरफ विस्तारित हो रहा है। उन्होंने कहा कि सफलता का आकलन अब परिणामों, उत्तरदायित्व, प्रयोग और ज़मीनी स्तर पर वास्तविक बदलाव के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यूपीएससी को अब ऐसे लोगों का चयन करना चाहिए जिनमें निर्णय लेने की क्षमता, स्थिति अनुकूलता और आजीवन सीखने की लगन हो।

उन्होंने चौथे बिंदु में प्रतिभा के लिए उभरती वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत की सिविल सेवाओं को सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं के लिए आकर्षक बनाए रखा जाना चाहिए। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि आकांक्षी और पूरे विश्व को जानने समझने वाले, महत्वाकांक्षी, उद्देश्यपूर्ण जीवन, स्वायत्तता, कार्य चुनौती स्वीकार करने वाले और काम का व्यापक प्रभाव चाहने वाले सिविल सेवा अभ्यर्थियों में ये गुण अधिक सक्रियता और स्पष्टता से होने चाहिए।

डॉ. मिश्र ने इस बात पर जोर दिया कि विकसित भारत के निर्माण में आने वाले दशकों को तीन सिद्धांतों से निर्देशित होना चाहिए: पहला- विकासपरक, सेवा-उन्मुख शासन के लिए सिविल सेवाओं के उद्देश्यों को पुनःस्थापित करना; दूसरा- अत्यंत सक्षम व्यक्तियों की पहचान के लिए चयन प्रक्रिया को पुनर्संयोजित करना; और तीसरा- आजीवन सुगम्य बदलाव वाले शासन स्थापित करना।

डॉ. मिश्र ने इस बात को रेखांकित किया कि मिशन कर्मयोगी क्षमता निर्माण के लिए व्यवस्थित, तकनीक-सक्षम, योग्यता-संचालित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह बदलाव नियम-आधारित से अब भूमिका-आधारित ढांचे की ओर, समान प्रशिक्षण से निरंतर सीखने की ओर, और एकाकी कार्यप्रणाली से सहयोगात्मक कल्याण की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि 3000 से अधिक पाठ्यक्रमों और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ, आईगॉट-कर्मयोगी प्लेटफ़ॉर्म इस विकास का आधार है, और एक ऐसा कार्यबल तैयार कर रहा है जो सेवा में रहते हुए सीखता है।

डॉ. मिश्र ने अपने संबोधन के समापन में इस बात पर ज़ोर दिया कि सिविल सेवाएं, विकसित भारत की ओर अग्रसर देश की यात्रा में केंद्रित हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अधिकारियों को विभिन्न क्षेत्रों के बारे में विचार करना चाहिए, विभिन्न क्षेत्रों में काम करना चाहिए और अपने काम को विनम्रता, निष्ठा और सउद्देश्यपूर्ण तरीके से अंजाम देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को लोगों के समान ही आंकड़ों के साथ भी आत्मविश्वास से जुड़ना चाहिए, उन्हें नैतिक निर्णय और प्रशासनिक क्षमता में संतुलन बनाए रखना चाहिए और नेतृत्व करते हुए भी निरंतर सीखने की प्रवृति जारी रखनी चाहिए।

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