न्यायिक सक्रियता न्यायिक आतंकवाद में न बदले : पूर्व CJI गवई

नई दिल्ली । सेवानिवृत्ति न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने आज एक इंटरव्यू में कई अहम सवालों पर बेबाकी से बात की। उन्होंने कहा, न्यायिक सक्रियता न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलनी चाहिए। अंततः, हमारा संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन और अलग-अलग कार्यक्षेत्र पर यकीन रखता है।

न्यायिक एक्टिविज्म पर अपनी राय स्पष्ट करने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ने ये भी साफ किया, ‘कई मौकों पर, नागरिक अपनी सामाजिक-आर्थिक बाधाओं के कारण, अपनी शिकायतों के निवारण और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्थिति में नहीं होते। ऐसी स्थिति में, अगर किसी व्यक्ति को न्यायपालिका अदालत का दरवाजा खटखटाने की अनुमति देती है तो ये गलत नहीं है।’

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के पास आकर सीधा इंसाफ मांगने के इस विकल्प के मौजूद होने से इस देश और समाज के अंतिम नागरिक को आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने का हमारा वादा पूरा होता है।

पूर्व चीफ जस्टिस लोकतांत्रिक ढांचे में शक्तियों के बंटवारे की धारण को सांविधानिक तरीके से और स्पष्ट करते हुए कहा, न्यायिक सक्रियता की कुछ सीमाएं होती हैं। अदालतों को उनके भीतर ही कार्य करना चाहिए। पूर्व सीजेआई ने कहा, ‘मैं हमेशा कहता रहा हूं कि न्यायिक सक्रियता न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलनी चाहिए। अंततः, हमारा संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के स्पष्ट विभाजन में विश्वास करता है।’

राज्य सरकारों के फरमान पर चलने वाले बुलडोजर से जुड़े सवाल पर पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हमने नागरिकों को इस बात की स्वतंत्रता दी कि जहां भी नियम-कानून का उल्लंघन हो, उच्च न्यायालयों के दरवाजे खटखटाएं। हमने यह अपेक्षा भी की कि कहीं से भी ऐसी शिकायतें सामने आने पर घटना अदालत के संज्ञान में लाई जाए। हमने कड़े कदम उठाए और कहा कि जो व्यक्ति अदालत के आदेशों का उल्लंघन कर रहा है, वह अदालत की अवमानना का दोषी होगा।’

पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा, हमने यह भी निर्देश दिया था कि यदि उचित प्रक्रियाओं का पालन करने के बावजूद ध्वस्त किए गए घरों का अवैध रूप से गिराया जाना सिद्ध हो जाता है, तो सरकार इसका पुनर्निर्माण कराएगी। इसका खर्च दोषी व्यक्तियों से वसूलना होगा।

लंबे समय तक न्यायाधीश रहे जस्टिस गवई से जब पूछा गया कि क्या उन्हें कभी कार्यपालिका या राजनेताओं की तरफ से किसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ा? इस पर उन्होंने स्पष्टता से कहा, नहीं, वास्तव में नहीं।

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