समाज के लिए कानून ही नहीं, संवेदना भी जरूरी : मोहन भागवत

बंगलूरू । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि समाज केवल कानून के सहारे नहीं चलता, बल्कि संवेदना, अपनापन और पारस्परिक समझ से चलता है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपने भीतर के दीपक को जलाकर समाज में समानता, प्रेम और एकता की भावना फैलानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जब हर व्यक्ति में अपनापन जागृत होगा, तभी भारत विश्व गुरु के रूप में खड़ा होगा।

भागवत ने कहा कि समाज को कानून नहीं, बल्कि संवेदना और आत्मीयता संचालित करती है। उन्होंने कहा कि हम सभी को अपने हृदय में उस अपनत्व की संवेदना को निरंतर जागृत रखना चाहिए। हमारे भीतर जो दीप जलता है, उसे इतना प्रज्वलित करना होगा कि वही दीप दूसरों के हृदय में भी उजाला करे। भागवत नेआगे कहा कि भारत का यही आध्यात्मिक दृष्टिकोण दुनिया को सिखाने योग्य है, क्योंकि विश्व के पास ज्ञान, विज्ञान और धन तो है, लेकिन वह आत्मीयता नहीं जो भारत की परंपरा का मूल है।

उन्होंने कहा कि भारत को पहले विश्व के बराबर खड़ा होना होगा, क्योंकि अब हमारे पास भी सब कुछ है। विज्ञान, विद्या, सुख-सुविधाएं। लेकिन भारत की सबसे बड़ी पूंजी उसका ‘अपनापन’ है। उन्होंने कहा कि विश्व को यही सिखाना है, बाकी सब उनके पास पहले से है। हमारे पूर्वजों ने जिस सत्य को युगों पहले समझा और जिया, उसी तक अब विज्ञान भी पहुंचा है। भागवत ने कहा कि भारत को इस ज्ञान के आधार पर दुनिया को जोड़ने और एकता का मार्ग दिखाने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हमारी परंपरा इस विचार पर आधारित है कि सभी में एक ही अस्तित्व है, जिसे ब्रह्म या ईश्वर कहा जाता है। उन्होंने कहा कि आज विज्ञान भी मानता है कि चेतना (कॉन्शसनेस) सार्वभौमिक है, लोकल नहीं है, और उसी से सब कुछ उत्पन्न हुआ है। हमारे पूर्वजों ने जिस सत्य को युगों पहले जाना था, वहां तक अब विज्ञान पहुंचा है। भागवत ने कहा कि भारत ने इस सत्य को केवल समझा ही नहीं, बल्कि कठिन परिस्थितियों में भी उसका आचरण कर उसे जीवित रखा है।

भागवत ने कहा कि जब भारत अपनी इस परंपरा के बल पर आगे बढ़ेगा, तो पूरा विश्व सुख, शांति और सुंदरता की ओर अग्रसर होगा। उन्होंने कहा कि आज जो हमारे पास साधन, विद्या और सुविधा है, उनका उपयोग विश्व को जोड़ने और सार्थक जीवन की ओर ले जाने के लिए होना चाहिए। उन्होंने अंत में कहा कि जो लोग समाज में एकता और सेवा के कार्य कर रहे हैं, उन्हें यह विश्वास रखना चाहिए कि उनका प्रयास केवल सफल ही नहीं, बल्कि सार्थक भी है।

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