नई दिल्ली (ईएमएस) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को स्वदेशी और आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल सहमति से होनी चाहिए, किसी दबाव में नहीं। उन्होंने साफ कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनकर ही दुनिया में योगदान देना है। दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने हिन्दुत्व की परिभाषा पर भी विस्तार से बात की। उन्होंने कहा, हिन्दुत्व या हिन्दुपन क्या है? अगर इसे संक्षेप में कहना हो तो दो शब्द हैं सत्य और प्रेम। दुनिया का संचालन एकता से होता है, सौदेबाजी और अनुबंधों से नहीं।
इस दौरान मोहन भागवत ने कहा कि हिंदुस्तान का जीवन मिशन विश्व कल्याण है। उनका कहना था कि विकास की दौड़ में दुनिया ने भीतर झांकना छोड़ दिया है। अगर भीतर खोज होगी तो ऐसी अनंत खुशी मिलेगी जो कभी खत्म नहीं होगी। यही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है और इससे पूरी दुनिया में शांति और सौहार्द का माहौल बनेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दुत्व किसी एक संप्रदाय या समुदाय की विचारधारा नहीं है, बल्कि यह वह सोच है जो सत्य और प्रेम पर आधारित होकर सबको साथ लेकर चलती है। अगर यही मार्ग अपनाया जाए तो दुनिया के संघर्ष खत्म हो जाएंगे और सच्चा सुख-शांति स्थापित होगी।
मोहन भागवत ने कहा कि समाज में जीवन में विविधता है, लेकिन कई बार इनमें संघर्ष भी दिखाई देता है, लेकिन सबको साथ लेकर चलना है और इसके लिए सबके बीच समन्वय स्थापित करना है। इसके लिए कई बार कुछ त्याग भी करना पड़ता है जिसके लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म सदैव सार्वकालिक सुखदाई होता है। यदि कोई वस्तु दुखदाई है तो वह धर्म नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि मरने के बाद अलग-अलग वर्गों के लिए अलग श्मशान होने की सोच को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सबको साथ लेकर देश को मजबूत बनाएंगे।
उन्होंने कहा कि उपभोक्तावाद की वृद्धि के कारण दुनिया में पाप, दुःख और संघर्ष बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि वोक कल्चर पूरी दुनिया पर छा रहा संकट है। क्योंकि लोग अपने अलावा किसी दूसरे की ओर नहीं देख रहे हैं। इससे बचने के लिए लोगों को केवल धर्म का मार्ग अपनाना चाहिए। यह धर्म लोगों को हमेशा मध्यम मार्ग पर बनाए रखता है और इससे आपस में संघर्ष पैदा नहीं होता। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद के शब्दों में भारत के पास धर्म है जिसे उसे समय-समय पर दुनिया को देनी चाहिए। धर्म शाश्वत है। उन्होंने कहा कि धर्म मूल तत्व है जो स्वभाव होता है। इसका धर्मांतरण नहीं किया जा सकता।
मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस का दूसरा लक्ष्य यह है कि जो संघ में हो रहा है, वह परिवार और समाज में भी हो। इसके लिए प्रयास करना चाहिए। भागवत ने कहा कि समाचारों की दुनिया से भारत को नहीं समझा जा सकता। समाचारों में जितना गलत दिखाई देता है, उससे 40 गुना अधिक अच्छा समाज के बीच हो रहा है। उन्होंने कहा कि समाज को संगठित करने के लिए जातिगत भेदभाव को यथाशीघ्र समाप्त करना चाहिए। इसके लिए स्वयंसेवकों को अपने आसपास की बस्तियों तक पहुंचना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक समाज में आपसी अविश्वास और भेदभाव हो, उसे समाप्त किए बिना संबंध मजबूत नहीं हो सकता।
भागवत ने कहा कि समाज के कमजोर वर्गों का सहयोग एक स्वाभाविक कार्य हो जाना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि दूरियों को पाटने के लिए दोनों वर्गों से काम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास और संस्कृति एक ही है। केवल नक्शे पर रेखाएं खिंचने से नए-नए देश बन गए हैं, लेकिन पूर्व में उनकी संस्कृति भी एक ही रही है। दूसरे देशों को जोड़ने का कार्य सबसे पहले पड़ोसी देशों से शुरू होना चाहिए। उनके साथ भी आत्मीय संबंध बनाकर उनके विकास की भी चिंता होनी चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा कि आज युवाओं की सोच निजी स्तर पर केंद्रित होती जा रही है। इसके दुष्परिणाम दिखाई दे रहे हैं। इसे ठीक करना है तो इसके लिए कुटुंब प्रबोधन करना चाहिए। इसके अंतर्गत सप्ताह में एक बार एक समय पर बैठकर भोजन करना और अपनी धर्म-संस्कृति पर चर्चा करनी चाहिए। इस बैठक में यह भी चिंता करनी चाहिए कि जिस धर्म और समाज से हम हैं, उसके लिए हम क्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता के लिए परिवारों को आपस में जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए। मरने के बाद श्मशान का भेद समाज के लिए सही नहीं है। उन्होंने कहा कि अपने घर में भोजन, भजन, वस्त्र सब कुछ अपनी परंपरा के अनुसार होना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि अपनी बातों को मनवाने के लिए हिंसात्मक तरीका नहीं अपनाना चाहिए। इसका उपयोग करके लोग देश को तोड़ने का काम करते हैं।
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