दलाई लामा को भारत रत्न देने के किसी भी प्रस्ताव का करुंगा समर्थन : इंद्र हांग सुब्बा

गंगटोक : तिब्बती आध्यात्मिक गुरु 14वें दलाई लामा को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग जोर पकड़ रही है और 80 से अधिक सांसदों ने इसका समर्थन किया है। विगत 6 जुलाई को धर्मशाला में तिब्बती आध्यात्मिक नेता के 90वें जन्मदिन समारोह के बाद यह नई मांग उठायी गई।

ऑल पार्टी इंडियन पार्लियामेंट्री फोरम फॉर तिब्बत की अगुआई वाले इस पहल में भाजपा, बीजद, कांग्रेस और जदयू सहित सभी राजनीतिक दलों के सांसद शामिल हैं। वरिष्ठ सांसद भर्तृहरि महताब और सुजीत कुमार इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका लक्ष्य प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को औपचारिक याचिका सौंपने से पहले 100 हस्ताक्षर जुटाना है।

वहीं, इस अभियान को सिक्किम में खासा समर्थन मिल रहा है, जहां के सांस्कृतिक ताने-बाने में बौद्ध धर्म गहराई से समाया हुआ है। हालांकि राज्य के लोकसभा सांसद इंद्र हांग सुब्बा (Indra Hang Subba) दलाई लामा के जन्मदिन पर आयोजित एपीआईपीएफटी की हालिया बैठक में शामिल नहीं हुए, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे के प्रति अपना समर्थन दोहराया।

अनुगामिनी से बात करते हुए सुब्बा ने कहा, हालांकि, हाल ही में एपीआईपीएफटी की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई, लेकिन मैंने इससे पहले ऐसी कई बैठकों में भाग लिया है। भविष्य में भी अगर कोई प्रस्ताव आता है तो मैं श्रद्धेय दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने के आह्वान का हमेशा समर्थन करूंगा। सिक्किम के नागरिक और सांसद के रूप में, मैं दृढ़ता से इस सम्मान के पक्ष में हूं।

उल्लेखनीय है कि सिक्किम में, दलाई लामा को न केवल एक आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में बल्कि शांति, करुणा और सत्यता के प्रतीक के रूप में भी सम्मानित किया जाता है। कई लोगों का मानना है कि उन्हें भारत रत्न देने से सिक्किम और तिब्बती लोगों के बीच साझा विरासत और स्थायी सांस्कृतिक संबंधों को भी मान्यता मिलेगी। हालांकि, दलाई लामा की गैर-भारतीय नागरिकता के कारण इस सम्मान के लिए उनकी पात्रता पर भी बहस जारी है। इस पर, समर्थकों का तर्क है कि वैश्विक शांति, आध्यात्मिकता और मानवाधिकारों में उनका योगदान राष्ट्रीय सीमाओं से परे है।

बहरहाल, इस अभियान ने सोशल मीडिया पर भी गति पकड़ी है और हाल ही में अमेरिका द्वारा तिब्बत को एक अधिकृत क्षेत्र के रूप में मान्यता देने वाले विधेयक के बाद भारत में भावना को और बढ़ावा मिला है। एपीआईपीएफटी के 100 हस्ताक्षरकर्ताओं के लक्ष्य के करीब पहुंचने के साथ, इस बात पर उत्सुकता बढ़ रही है कि भारत सरकार बढ़ती मांग पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देगी।

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