गंगटोक : दार्जिलिंग के जाने-माने विकास अर्थशास्त्री, सिक्किम के मुख्य आर्थिक सलाहकार और नीति विशेषज्ञ प्रो महेंद्र पी लामा ने दक्षिण एशियाई देशों में लंबे समय से चली आ रही ‘खराब व्यापार और परिवहन संपर्क’ समस्या की ओर एक बार फिर से ध्यान आकर्षित किया है।
इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग एशिया-प्रशांत (यूएनईएससीएपी) द्वारा पिछले महीने प्रकाशित “पूर्वी दक्षिण एशिया में व्यापार और परिवहन संपर्क को मजबूत करना” शीर्षक से उनका नवीनतम पेपर बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (बीबीआईएन) जैसे देशों को अधिक प्रभावी ढंग से एक साथ काम करने में मदद करने के लिए एक विस्तृत रोडमैप प्रदान करता है।
अपने इस शोध आधारित पेपर में प्रो लामा ने चार प्रमुख दक्षिण एशियाई पड़ोसियों-बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल के बीच मजबूत आर्थिक संबंधों को रोकने वाली चुनौतियों का एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, साझा इतिहास एवं लंबी सीमाएं, मजबूत सांस्कृतिक जुड़ाव के बावजूद ये देश अभी भी एक-दूसरे के बीच वस्तुओं, लोगों तथा सेवाओं के आवागमन में समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसका परिणाम उच्च व्यापार लागत, लंबी देरी और आर्थिक विकास के लिए छूटे हुए अवसर हैं।
प्रो लामा स्पष्ट तौर पर लिखते हैं, जहां बाकी दुनिया तेज व्यापार नेटवर्क और डिजिटल लॉजिस्टिक्स की ओर बढ़ रही है, पूर्वी दक्षिण एशिया अभी भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। सड़कें टूटी हुई हैं, रेल नेटवर्क बाधित हैं, सीमा चौकियां पुरानी हो गई हैं और कई जगहों पर अभी भी कागजी कार्रवाई मैन्युअल रूप से की जाती है। वे बताते हैं कि अक्सर अपने पड़ोसी के मुकाबले दूर के देश के साथ व्यापार करना सस्ता और तेज़ होता है, जिसका कोई आर्थिक मतलब नहीं है। उनके अनुसार, ऐसी स्थिति पूरे क्षेत्र में छोटे व्यवसायों, किसानों, निर्माताओं और यहां तक कि उपभोक्ताओं को भी नुकसान पहुंचा रही है।
साथ ही, पेपर में विस्तार से चर्चा की गई है कि मानचित्रों पर इन देशों के बीच कितने व्यापार मार्ग मौजूद हैं, लेकिन व्यवहार में वे या तो बंद हैं, खराब तरीके से बनाए रखे गए हैं या उनमें नियम जटिल हैं। इसके लिए उन्होंने ऐसे कुछ सीमा बिंदु का उदाहरण दिया जहां एक देश के ट्रकों को दूसरे देश में प्रवेश करने की अनुमति है। इनमें अधिकातर माल को सीमा पर उतार कर उसकी फिर से जांच की जाती है और सीमा के दूसरी तरफ नए वाहनों में फिर से लोड किया जाता है। इसमें समय और पैसा दोनों बर्बाद होते हैं। ये समस्याएं क्षेत्रीय व्यापार को अप्रतिस्पर्धी और अक्षम बनाती हैं।
इसे ठीक करने के लिए, प्रोफेसर लामा ने कई स्पष्ट और विस्तृत सुझाव भी दिये हैं। वे “आर्थिक गलियारे” के विकास की दृढ़ता से अनुशंसा करते हैं। ये व्यापार और परिवहन मार्ग हैं जो चार लेन वाले राजमार्गों, रेलवे लाइनों, लॉजिस्टिक्स हब, गोदामों और डिजिटल प्रणालियों जैसे अच्छे बुनियादी ढांचे से समर्थित हैं। उनके अनुसार, इन गलियारों से न केवल माल को तेजी से ले जाने में मदद मिलेगी, बल्कि नई नौकरियों और सेवाओं का सृजन करके उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सहायता भी होगी। इस कड़ी में उन्होंने कोलकाता-ढाका-अगरतला गलियारे और दिल्ली-काठमांडू-बीरगंज गलियारे जैसे उदाहरण देते हुए कहा कि अगर पूरी तरह से विकसित किया जाए तो लाखों लोगों को लाभ मिल सकता है।
प्रोफेसर लामा का एक और प्रमुख सुझाव डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके सीमा प्रणालियों का आधुनिकीकरण करना है। वे बताते हैं कि देशों को इलेक्ट्रॉनिक डेटा एक्सचेंज सिस्टम अपनाना चाहिए ताकि सभी सीमा शुल्क और निकासी कार्य ऑनलाइन किए जा सकें। वे यह भी कहते हैं कि सरकारों को इन डिजिटल प्रणालियों के लिए एक साझा मंच बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, ताकि इसमें शामिल सभी देश वास्तविक समय में जानकारी देख और संसाधित कर सकें। इससे देरी में भारी कमी आएगी और सीमा एजेंसियों के बीच विश्वास बढ़ेगा। वर्तमान में, क्षेत्र के प्रत्येक देश के पास सीमा शुल्क, सुरक्षा, परिवहन परमिट और उत्पाद मानकों के लिए अपने स्वयं के नियम हैं जो आपस में भ्रम पैदा करते हैं और लागत बढ़ाते हैं।
इसके अलावा, प्रोफेसर लामा प्रमाणपत्रों और परमिटों की पारस्परिक मान्यता की भी अनुशंसा करते हैं, जिससे कि एक बार एक देश में किसी उत्पाद को मंजूरी मिलने के बाद उसे फिर से उसी प्रक्रिया से गुजरे बिना दूसरे देश में स्वतंत्र रूप से भेजा जा सके। उन्होंने मजबूत संस्थानों और सहयोग प्लेटफार्मों के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित किया हैं। उनका कहना है कि बीबीआईएन, बिम्सटेक और एसएएसईसी जैसे मंचों को और अधिक कार्रवाई-उन्मुख होना चाहिए।
महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रो लामा का यह शोधपत्र केवल सैद्धांतिक स्तर पर ही नहीं रह कर आसियान और यूरोपीय संघ जैसे अन्य क्षेत्रों से व्यावहारिक उदाहरण, डेटा और सफल केस स्टडी प्रस्तुत करता है। लामा बताते हैं कि कैसे वे क्षेत्र भौतिक अवसंरचना और नीति समन्वय दोनों के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने में सक्षम रहे हैं। वह बीबीआईएन देशों से इन अनुभवों से सीखने के साथ ही स्थानीय संदर्भ के आधार पर अपनी खुद की रणनीतियों को भी अनुकूलित करने का आग्रह करते हैं।
पेपर की एक खास विशेषता इसका मानवीय स्पर्श भी है। इसमें प्रोफेसर लामा लगातार याद दिलाते हैं कि व्यापार और परिवहन केवल वस्तुओं और संख्याओं के बारे में नहीं है मम्बर्स-वे लोगों के बारे में हैं। बेहतर सडक़ों का मतलब स्कूलों और अस्पतालों तक बेहतर पहुँच हो सकता है। तेज़ कस्टम क्लीयरेंस का मतलब ज़रूरी वस्तुओं की कम कीमतें हो सकती हैं और आसान परिवहन का मतलब दूरदराज के इलाकों में रहने वाले किसानों तथा कारीगरों के लिए नए बाज़ार हो सकते हैं।
पेपर के विमोचन के साथ साझा किए गए अपने व्यक्तिगत संदेश में प्रोफेसर लामा ने कहा, कनेक्टिविटी सिर्फ़ एक आर्थिक एजेंडा ही नहीं बल्कि एक सामाजिक और मानवीय एजेंडा है। जब लोग स्वतंत्र रूप से घूमने में सक्षम होते हैं तो सामान बाज़ारों तक तेज़ी से पहुंच पाते हैं और व्यापार सीमाओं के पार बढ़ने में सक्षम होते हैं, जिससे हम सभी को लाभ होता है। अब पूर्वी दक्षिण एशिया के लिए एक साथ आगे बढ़ने का समय आ गया है।
इस पेपर पर नीति निर्माताओं, व्यापार विशेषज्ञों और शैक्षणिक संस्थानों सहित विभिन्न हितधारकों का ध्यान पहले ही आ चुका है। उम्मीद है कि आगामी क्षेत्रीय बैठकों और विकास कार्यक्रमों में इसकी कई सिफारिशों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।
कहना न होगा कि बेरोजगारी, बढ़ती कीमतों और धीमी वृद्धि से जूझ रहे देशों के लिए यह पेपर बेहतर सहयोग के माध्यम से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए एक व्यावहारिक और प्राप्त करने योग्य योजना पेश करता है। यह सिर्फ़ एक नीति दस्तावेज़ न होकर एक चेतावनी भी है। यह कार्य करने, सहयोग और पूर्वी दक्षिण एशिया की सीमाओं में मौजूद विशाल अप्रयुक्त क्षमता को उजागर करने का आह्वान है। यदि क्षेत्र के नेता, प्रशासक और नागरिक एकजुट हो जाएं तो एक अच्छी तरह से जुड़े, शांतिपूर्ण और समृद्ध दक्षिण एशिया का सपना बहुत दूर नहीं रह जाएगा।
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