नई दिल्ली, 05 सितम्बर (एजेन्सी)। सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल की बच्ची से दुष्कर्म और हत्या मामले में एक व्यक्ति की मौत की सजा रद्द कर दी है। साथ ही यह भी कहा कि एक न्यायाधीश को निष्पक्ष होना चाहिए। हालांकि इसका यह मतलब भी नहीं है कि वह अपनी आंखें बंद कर ले और रोबोट की तरह काम करे। इस दौरान शीर्ष अदालत ने पटना हाई कोर्ट की आलोचना भी की है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि पूरी जांच में बहुत गंभीर खामियां है। इतना ही नहीं फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट भी नहीं ली गई थी। पीठ ने कहा कि इतने गंभीर मामले में इतनी बड़ी गलती को मामूली कहते हुए मुझे दुख हो रहा है। जांच अधिकारी की ओर से इतनी गंभीर गलती के लिए कोई भी उचित स्पष्टीकरण पेश नहीं किया गया है। इतना ही नहीं जांच अधिकारी ने आरोपी का किसी चिकित्सक से चिकित्सीय परीक्षण भी नहीं कराया।
शीर्ष अदालत ने पटना हाईकोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि यह हैरान करने वाला है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट इस आधार पर आगे बढ़े कि वह व्यक्ति इसलिए दोषी था क्योंकि वह घटना के दिन पीड़िता के घर आया था और उसे अपने घर आ कर टीवी देखने का लालच दिया था। बस यह देखा गया कि पुलिस के सामने सभी गवाहों का मामला यह था कि यह एक अन्य किशोर आरोपी था जो पीड़िता के घर आया और उसे अपने साथ ले गया।
शीर्ष अदालत की पीठ ने यह भी कहा कि न तो बचाव पक्ष के वकील, न ही सरकारी वकील, न ही ट्रायल कोर्ट के पीठासीन अधिकारी और दुर्भाग्य से उच्च न्यायालय ने भी मामले के इस पहलू पर गौर करना और सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश करना उचित नहीं समझा।
शीर्ष अदालत ने मौत की सजा के आदेश को रद्द करने के साथ ही जांच में गंभीर खामियों को देखते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए हाई कोर्ट में वापस भेज दिया।
बता दें कि अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि याची (आरोपी) ने एक जून, 2015 को नाबालिग के साथ तब दुष्कर्म किया था जब वह कथित तौर पर उसके घर टेलीविजन देखने गई थी। इतना ही नहीं दुष्कर्म के बाद आरोपी ने उसका गला भी घोंट दिया था। ये मामला बिहार के भागलपुर जिले के एक गांव में साल 2015 में हुआ था। इस मामले में भागलपुर की ट्रायल कोर्ट ने 2017 में आरोपी को बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराया था। साथ ही अपराध को दुर्लभतम श्रेणी में मानते हुए मौत की सजा सुनाई थी। बाद में जब आरोपी पटना हाईकोर्ट पहुंचा तो हाई कोर्ट ने साल 2018 में दोषसिद्धि के खिलाफ दाखिल उसकी याचिका को खारिज कर दिया और मौत की सजा को बरकरार रखा। इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी। बाद में आरोपी ने सजा के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था।
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