लेखक- सनत जैन
भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर गए थे। न्यूयॉर्क के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी की ओर से गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें अमेरिका की 15 टेक कंपनियों के सीईओ ने भाग लिया। सभी कंपनियों का फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर था। भविष्य में एआई तकनीकी पर आधारित सेवाओं पर टेक कंपनियों को अरबों खरबों रुपए की कमाई भारत से होने जा रही है। इसको लेकर विश्व भर की सभी टेक कंपनियां भारत के साथ अपने व्यापार और व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सरकार पर दबाव बना रही हैं।
एआई रिसर्च के मामले में चीन अभी सबसे आगे है। दूसरे स्थान पर अमेरिका है। भारत का नंबर तीसरा है। अमेरिका की कंपनियां एआई तकनीकी के माध्यम से भारत में अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। भारत की आबादी, भारत की सबसे बड़ी पूंजी है। अभी एआई तकनीकी का काम ठीक तरह से शुरू भी नहीं हुआ है। इसके बाद भी हर माह अरबो रुपए की कमाई विदेशी कंपनियां भारत से कर रही। चैट जीपीटी और गूगल के कई टूल्स भारत में विभिन्न कंपनियों द्वारा मासिक सब्सक्रिप्शन के आधार पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। 1500 रुपए से लेकर ढाई हजार रुपए तक के विभिन्न किस्म के सब्सक्रिप्शन देकर प्रतिमाह अरबों रुपए की कमाई विदेशी कंपनियां करने लगी हैं।
एआई तकनीकी अभी प्रारंभिक दौर में है। अगले कुछ ही वर्षों में सभी क्षेत्रों में एआई तकनीकी का उपयोग बड़े पैमाने पर जब होना शुरू हो जाएगा। उस समय टेक कंपनियों के लिए भारत सबसे बड़ा बाजार होगा। गूगल और एनवीडीया सहित कई बड़ी-बड़ी दिग्गज कंपनियां भारत सरकार के विकास की तारीफ करते हुए भारत में अपने व्यवसाय को बढ़ाने की हर संभव कोशिश कर रही हैं। प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान वहां की टेक कंपनियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास की हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कंपनियों से कहा है, अगले दो वर्षों में एआई तकनीकी के 85000 से अधिक इंजीनियर और टेक्नीशियन को भारत तैयार करना चाहता हैं। भारत सरकार अनुसंधान और विकास के मामले में भी सहयोग करने के लिए तैयार है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा में टेक कंपनियों के गोलमेज सम्मेलन में भारत में ज्यादा निवेश करने का भरोसा टेक कंपनियों ने दिया हैं। भारत में अभी एआई तकनीकि और सेवाओं को लेकर कोई कानून तैयार नहीं हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ एआई तकनीकी को लेकर नियम और कानून बनाने पर विचार विमर्श कर रही है। अभी एआई तकनीकि शुरुआती दौर में हैं। भारत में जिस तरह से ऑनलाइन सेवाओं का विस्तार पिछले वर्षों में हुआ है। मोबाइल और इंटरनेट की कनेक्टिविटी जिस तरह से भारत में बढ़ी है। उसके कारण दुनिया भर की टेक कंपनियां, यह मानकर चल रही है। एआई तकनीकी आधारित सेवाओं के शुरू होने पर भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार होगा। इसलिए बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत मैं बड़े पैमाने पर निवेश करने के लिए प्रयासरत हैं। दुनिया में जिस तरह से आर्थिक मंदी की आहट देखने को मिल रही है। एआई तकनीकी आने के बाद बेरोजगारी और भी बढ़ने की बात कहीं जा रही है।
मानवीय सेवाओं का स्थान अब रोबोट और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सहायता से होने पर, बेरोजगारी बढ़ना तय है। भारत की युवा आबादी सबसे ज्यादा है। भारत में बेरोजगारी की दर भी दुनिया में सबसे ज्यादा है। ऐसी स्थिति में एआई तकनीकी के फायदे भारत को कम और विदेशी कंपनियों को आर्थिक लाभ ज्यादा होंगे। भारत अपनी बेरोजगारी की समस्या से किस तरह से निपटेगा। इसका कोई उपाय भारत सरकार ने नहीं सोचा है। विदेशी कंपनियों के दबाव में भारत सरकार को ऐसा लग रहा है। एआई तकनीकी का उपयोग बढ़ने से भारत का तेजी के साथ विकास होगा। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा होना संभव नहीं है। शुरुआती दौर में ही जिस तरह टेक कंपनियों द्वारा मनमाना सब्सक्रिप्शन वसूल किया जा रहा है। उससे टेक कंपनियों को आर्थिक रूप से बहुत बड़ा फायदा होगा। भारत में एआई तकनीकी को सीखने और उपयोग में लाने से हर माह अरबो रुपए भारतीय उपभोक्ता खर्च कर रहे हैं।
भारतीय युवा एआई तकनीकी पर निर्भर होने के कारण मानसिक दुष्प्रभाव भी आगे चलकर देखने को मिलेंगे। भारत सरकार को बड़ी गंभीरता के साथ इस मामले में निर्णय करना होगा। विदेशी निवेश और टेक कंपनियों के ऊपर भरोसा करने के पहले एआई तकनीकी के प्रभाव और दुष्प्रभाव पर भी सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। टेक कंपनियां अपना एकाधिकार ना बना पाएं, इसके लिए भी सरकार को समय रहते हुए पहले नियम और कानून तैयार करने होंगे। वैश्विक स्तर पर जिस तरह से युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। हाल ही में लेबनान और अन्य देशों में जिस तरह से पेजर, मोबाइल फोन और कंप्यूटर में विस्फोट किए गए हैं। यह भी तकनीकी का कमाल है। पेजर जो ऑनलाइन जुड़े हुए भी नहीं थे। उसके बाद भी बड़े पैमाने पर सुनयोजित रूप से विस्फोट कराकर युद्ध के रूप में तकनीकी का सहारा लिया गया है। इस तरह की स्थितियों से बचने के लिए भी भारत सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
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